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28/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
तदनन्तर वन्दी जनों की विरुदावली प्रारम्भ हुई । प्रसन्नचित्त जयकुमार अर्थियों को रत्नादि सम्पत्ति देता हुआ शिविर में प्रवेश किया । छठे सर्ग की समाप्ति में षडारचक्रश्लोक द्वारा नृपति परिचय प्रकट किया गया है ।
सप्तमः सर्गः सप्तम सर्ग में अर्ककीर्ति के सेवक दुर्मर्षण द्वारा स्वयंवर के विरुद्ध कोलाहल मचाया गया है । मन्त्रियों के समझाने पर भी वह कोलाहल रुका नहीं । अर्ककीर्ति ने रणभेरी बजाकर युद्ध की घोषणा कर दी।
दुर्मर्षण कहते हैं इसे मैं स्वयंवर नहीं समझता किन्तु इदंकर है क्योंकि कन्या ने परानुज्ञा से माला डाली है । मायावियों की माया सरलता से समझ में नहीं आती । काशी नरेश ने अपने अहंकार से यहाँ छल किया है । यदि ऐसा न होता तो विद्या देवी के मुख से विपुल रिपु-मण्डल के रहने पर भी जयकुमार के गुणों का ही विशेष रूप से वर्णन क्यों होता । इस प्रकार घोषणा करता हुआ वह चक्रवर्तिपुत्र जयकुमार को उपहास, व्यङ्गयात्मक अनेक वाक्यों से कुम्भकार रजक आदि बना दिया ।
इस प्रकार दुर्मर्षण के अनेकशः उत्तेजक वाणी के प्रभाव से भरत सम्राट के पुत्र अर्ककीर्ति के नेत्र लाल हो गये तथा उसके वाग्वह्नि से भरत के पुत्र मुख से वहुशः शब्दाङ्गार निकलने लगे। वे बोले हे मित्र! यह अकम्पन अपने नामार्थ पर विश्वास करता है किन्तु मेरा क्रोध पर्वतवत् अचल राजाओं के भी कम्पका कारण बन जाता है। इसको यह जानता नहीं है कि मेरा सुदृढ़ मुष्टि खड्ग काशीपति अकम्पन का नाश कर उस प्रशस्त कन्या को यहाँ लायेगा। इस समय जयकुमार के बल का धैर्य संग्राम में यम जिह्वा सदृश खड्ग के धारों से देखा जायेगा। मैं नीति विद्या विशारद हूँ। योग से विजय लक्ष्मी एवं वरमाला दोनों को ग्रहण करूँगा क्योंकि नीति विज्ञ अपने भुजबल पर विश्वास रखते हैं। इस प्रकार अर्ककीर्ति ने बहुशः उद्गार व्यक्त किया।
तदनन्तर निर्दोष मन्त्री के द्वारा अर्ककीर्ति को विविध ढंग से समझाये जाने पर भी मारकेश की दशा के अधीन होता हुआ अर्ककीर्ति मन्त्री के उपदेशामृत को अनादर कर युद्ध के लिये उत्कृष्ट दोषों से युक्त हो गया। र यह समाचार सुनकर अकम्पन मन्त्रियों से परामर्श कर अर्ककीर्ति को समझाने हेतु एक दूत को प्रेषित किया एवं दूत अर्ककीर्ति के पास पहुँचकर अकम्पन के सन्देशों को कहा । प्रत्युत्तर में अर्ककीर्ति ने अनेक असह्य वचन कहे एवं दूत ने भी कटु भाषण करके प्रस्थान कर दिया ।
पुनः दूत अकम्पन से अर्ककीर्ति के यथार्थवृतान्त को कह दिया । सुनकर अकम्पन पक्ष के लोग भी युद्ध के लिये उद्यत हो गये।