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________________ द्वितीय अध्याय / 27 भाषण, माल्यदान, विनयादि द्वारा भव्य स्वागत किया । पृथ्वी की रत्न सुलोचना हेतु दिक्पाल भी पहुँचे । सर्व प्रथम पहुँचने की इच्छा से आगन्तुकों के कारण राज-मार्ग का तिल मात्र भी स्थान रिक्त नहीं था । जगत् के सभी राजा आ पहुँचे तो महाराज जयकुमार भी पधारे, जिससे वह सभा और भी निखर पड़ी। उन पर सब राजकुमारों की आश्चर्य मय दृष्टि पड़ी। वह स्वयंवर सभा भी इन्द्र सभा से भी बढ़कर थी । क्योंकि इन्द्र सभा में एक शुक्र, एक वृहस्पति और एक चन्द्रमा है। यहाँ अनेकों शुक्र (कवि) वृहस्पति (विद्वान्) एवं चन्द्र विराजमान थे 1 तत: अकम्पन के ज्येष्ठ भ्राता चित्राङ्गद महाराज की आज्ञाकारिणी विद्यारूपी बुद्धि देवी से समागत राजकुमारों का महाराज अकम्पन ने गुण वर्णन प्रारम्भ करवा दिया । तदनन्तर युवकों के मन में रति के समान हर्षोत्पादिका, दरिद्रों के लिये लक्ष्मी के सदृश, शोभनाङ्गी, बिम्ब फलाधरोष्ठी, सुलोचना उत्तम, नूतन निर्मल, प्राङ्गण से युक्त सभा मध्य में पहुँची । षष्ठः सर्गः षष्ठ सर्ग में समागत राजकुमारों का विद्या देवी द्वारा परिचय एवं कन्या द्वारा जयकुमार के गले में मालार्पण दिखाया गया है । सर्ग में श्लेष, विरोधाभास आदि का विशेष प्रयोग किया गया है । भू-मण्डल में सम्मानित एक-एक राजाओं का राजुकमारी सुलोचना के लिये परिचय देने लगी, जिस प्रकार आचार्य विद्यानन्द की मति तत्त्वार्थ सूत्र का अर्थ बतलाती है, उसी प्रकार कंचुकी द्वारा सूचित तत्तत् राजकुमारों के सम्बन्ध में अर्ककीर्ति, कलिङ्गाधिपति, कामरूपाधिप, कांचीपति, काविलराज, मालवदेशाधिपति प्रभृति जो भी धरणीपति पहुँचे थे, विद्यादेवी ने सबका शीघ्रता से वर्णन किया । तदनन्तर मेघेश्वर जयकुमार की सम्पत्ति, वीरता, वैभव आदि का वर्णन सुनकर नातवदना सुलोचना ने अक्षर माला के समान अपनी निश्चल वरमाला को कम्पन युक्त हाथों से जयकुमार गले में डाल दी । सुलोचना के रोम बाल भाव धारण करने वाले वर की शोभा देखने हेतु गरदन को ऊपर उठाकर खड़े हो गये । जयकुमार के निर्मल हृदय में प्रतिबिम्बित माला कुछ भीतर प्रविष्ट हुई कुछ ऊपर उठी हुई से ऐसा प्रतीत हुई मानो यह कामदेव की वाण परम्परा है। इस प्रकार सुलोचना के माल्यार्पण को देखकर अन्य राजकुमारों के मुख मलिन हो गये । जयकुमार का मुख अधिक प्रसन्न हो उठा । जयकुमार और सुलोचना के परस्पर प्रशस्त मेल को देखकर आकाश से पुष्प वर्षा 1
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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