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26 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
प्रमाण कर प्रस्थान किया । जिस प्रकार सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चरित्र रूप तीन साधनों से गमन करने वाले चतुर्दश गुण स्थानों को प्राप्त करने वाले श्वेत ध्यान द्वारा मुक्ति प्राप्त कर ली जाती है, उसी प्रकार चौदह लगाम को धारण करने वाले, जल-थल - आकाश तीन मार्गों से गमन करने वाले श्वेत घोड़ों से शीघ्र ही जयकुमार काशी पहुँचे ।
तत: काशी नरेश उस जयकुमार को सादर नगर में ले गये तथा प्रेम के साथ आवासादि का समीचीन प्रबन्ध किया ।
चतुर्थः सर्गः
सुलोचना के स्वयंवर का समाचार पाकर भरत चक्रवर्ती के पुत्र अर्ककीर्ति चलने के लिये उत्सुक होते हैं । किन्तु सुमति नामक मन्त्री ने कहा कि महाराज आपका जाना ठीक नहीं है क्योंकि गुणवान् व्यक्ति को बिना निमन्त्रण के नहीं जाना चाहिए। इसके पश्चात् सहसा दुर्मति नामक मन्त्री पहुँचकर बोला कि सार्वजनिक अवसरों पर जो जाता है, उसके लिये निमन्त्रण रहता ही है । इसलिये अवश्य चलें ।
ततः अष्टचन्द्र नरपति स्वयं वरार्थ संगठित सभा में जाने के लिये उद्यत हो गया तथा सज-धज कर काशी नगरी को शीघ्र पहुँच गया । भरत - पुत्र अर्ककीर्ति को आये हुए जानकर अकम्पन ने हाथ में उपहार लेकर उनका स्वागत किया तथा निवासार्थ राजभवन ही बता दिया। स्नानादि क्रियानन्तर अर्ककीर्ति ने स्वयंवर सभा में सुलोचना के द्वारा वरण न किये जाने के परिस्थिति पर विचार करते हुए अन्त में उसके अपहरण का निश्चय करता है । यह सुनकर उसके निकटस्थ सेवकों ने अपने-अपने ढंग से सुझाव पेश किये ।
अन्ततः दुर्मति ने सुलोचना के आगे-आगे चलने वाले कंचुकी को समझाकर सुलोचना से अर्ककीर्ति को माल्यार्पण कराने के प्रयास के प्रस्ताव का सभी से समर्थन प्राप्त कर कंचुकी से विनम्र प्रस्ताव रखता है । महेन्द्र कंचुकी से मनोनुकूल उत्तर को प्राप्तकर प्रसन्नता के साथ अर्ककीर्ति के पास पहुँचकर बोला कि ईश तो भगवान् ऋषभदेव ही हैं आप लोगों का अभीष्ट पूरा होगा । किसी ने कहा हमारे प्रभु नव-वधू के स्वामी बनेंगे। मिष्ठान्न एवं गीत सुनने के पात्र हम लोग बनेंगे ।
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इस प्रकार हास्य विनोद महोत्सवानन्तर शरद् ऋतुरूपी नायिका देखने के लिए आ पहुँची। शरद् का वर्णन विस्तृत रूप से किया गया है, उसी के वर्णन में सर्ग की समाप्ति की गयी है ।
पंचमः सर्गः
पंचम सर्ग में स्वयंवर का वर्णन किया गया है, जिसमें शस्त्र - शास्त्र निपुण वीरों का आगमन हुआ है । कुछ लोग उत्सव दर्शन की इच्छा से तथा कतिपय सुलोचना के अपहरण की इच्छा से पहुँचे । काशी राज ने आगन्तुक लोगों को सुन्दर निवास स्थान देकर समयोचित