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प्रथम अध्याय /7 19. अष्टपाहुड का पद्यानुवाद : यह अष्टपाहुड का पद्य में अनुवाद, जिसमें श्रेयो मार्ग पर
प्रकाश डाला गया है। 20. मानव जीवन : इस ग्रन्थ में मनुष्य जीवन की महत्ता बतलायी गयी है तथा कर्तव्य पथ
पर चलने के लिये प्रेरणा की गयी है । 21. स्वामी कुन्द-कुन्द और सनातन जैन धर्म : इस ग्रन्थ में अनेक प्रमाणों से सत्यार्थ जैन
धर्म का निरूपण स्वामी कुन्द कुन्दाचार्य के समयसार' आदि ग्रन्थों के आधार पर किया गया है।
श्री. भुरामल शास्त्री जी (आचार्य ज्ञानसागरजी) के जयोदय महाकाव्य को देखने से यह प्रतीत होता है कि कवि का लक्ष्य केवल कविता निर्माण करना मात्र ही नहीं अपितु आकर्षक प्रौढ़ प्राञ्जल अनुप्रासादि अलङ्कारगुणादि के सरल सरस माध्यम द्वारा जैन धर्म के सिद्धान्तों को व्यक्त करना प्रधान लक्ष्य है । जैन धर्म के प्राणभूत अहिंसा, सत्य आदि मूल व्रतों एवं साम्यवाद अनेकान्त वाद, कर्मवाद आदि आगमिक और दार्शनिक विषयों का प्रतिपादन कर शान्त साम्राज्य का प्रणयन करना कवि का लक्ष्य रहा है । इस कवि की समग्र रचनाओं में प्रायः इसी लक्ष्य को दृष्टिगत रखा गया है। .
- आ. श्री ज्ञानसागर जी का जयोदय महाकाव्य यह व्यक्त करता है कि ये वैयाकरण, ज्योतिर्विद, आयुर्वेद ज्ञाता, दर्शनसिद्धान्त मर्मज्ञ एवं काव्य कला प्रदर्शन में परम प्रवीन थे । प्रकाण्ड वैयाकरण : ....
जयोदय महाकाव्य में अनेक ऐसे श्लोक दर्शनीय हैं, जिनसे कवि के प्रबुद्द वैयाकरण होने का प्रमाण है । जैसे -
"न वर्णलोपः प्रकृतेर्न भङ्ग कुतोऽपि न प्रत्ययवत्प्रसङ्गः ।
यत्र स्वतो वा गुणवृद्धिसिद्धिः प्राप्ता यदीयापदुरीतिऋद्धिम् ॥ __ यहाँ श्लिष्ट परिसंख्या के माध्यम से राजा जयकुमार के वर्णन प्रसङ्ग में कहा गया है कि इसके पद की रीति भी समृद्धि को प्राप्त की थी। उसके राज्य (प्रजा) में ब्राह्मणादि वर्गों का लोप नहीं था केवल व्याकरण शास्त्र में प्रकृति से सुबन्त या तिङन्त जो पद बनते हैं उसमें वर्ण का लोप होता है । मन्त्री आदि प्रधान पुरुषों का राज्य में विनाश या अपमान नहीं होता था केवल व्याकरण शास्त्र में ही प्रकृति गत भङ्गता मिलती थी। राज्य में कभी । विरुद्ध गमन दोषों का प्रसङ्ग नहीं आता था एवं प्रजा में गुणों की वृद्धि स्वतः सिद्ध थी। व्याकरण शास्त्र में ही गुण वृद्धि नामक आदेश होकर पद का निर्माण होता है । किन्तु इस प्रकार का रूप जयकुमार के राज्य में नहीं था। .. इसी प्रकार से इसी सर्ग का श्लोक पंचानबे भी दर्शनीय है -
"भुवि धुतोऽग्रविधिगुणवृद्धिमान् सपदि तद्धितमेव कृतं भजन् । यतिपतिः कथितो गुणिताह्वयः सततमुक्तिविदामिति पूज्यपोत् ॥ .