________________
8 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
16.
I
चतुर्थ सर्ग के सोलहवें श्लोक में भी कवि के वैयाकरण होने का संकेत मिलता है"पाणिनीयकु लकोक्तिसुवस्तु पूज्यपादविहितां सुदृशस्तु । सर्वतोऽपि चतुरङ्गतताभिः काशिकां ययुरमी धिषणाभिः ॥ ' सुलोचना के पाणिग्रहणार्थ राजा काशी पहुँच गये । यहाँ पर समासोक्ति के द्वारा यह भी बोध्य है कि अध्ययन बोध आचरण और प्रचारण इन चार रूपों से विकसित होने वाली आचार्य पाणिनि व्याकरण पर निर्मित ' काशिका वृत्ति' को लोगों ने प्राप्त किया । महर्षि पाणिनि के अष्टाध्यायी पर जयादित्य वामन की बनायी हुई काशिका वृत्ति है । पाणिनीय शब्द श्लिष्ट होने के कारण पाणिग्रहण एवं पाणिनीय व्याकरण दोनों को व्यक्त करता है ।
जयोदय के सर्ग एकादश श्लोक संख्या 78 में सुलोचना का वर्णन करते हुए श्लेष के माध्यम से व्याकरण का वर्ण- ज्ञान अभिव्यक्त किया है -
44
'सदुष्मणान्तस्थसदंशुकेन स्तनेन साध्वी मुकु लोपमेन । चेतश्चुरा या पटुतातुला पि स्वरङ्गनामानमिता रुचापि ॥
श्लोक का तात्पर्य यह है कि वह सुलोचना यौवन के सुन्दर ऊष्मा अर्थात् तेज से युक्तं सुन्दर चोली से आवृत्त कली सदृश स्तन युगल से उपलक्षित साध्वी अर्थात् सुन्दर आसन वाली होती हुई भी अन्य के चित्त को आकृष्ट करने में दक्ष थी । अपनी कान्ति से देवाङ्गनाओं से भी सम्मान को प्राप्त थी एवं व्याकरण की दृष्टि से भी यह सिद्ध होता है कि वह सुलोचना सम्पूर्ण वर्ण मात्रिकाधिकारिणी अन्त:करण में पहुँची ।
यहाँ ऊष्मा से शल उष्माण: (श् ष् स् ह्) एवं अन्तस्थ पद से यणोऽन्तस्था: (य् र् ल् व्) वर्ण से उपलक्षित मु' और 'कु' म वर्ग और 'क' वर्ग अर्थात् प् फ् ब् भ् म् क् ख् ग् घ् ङ् इन वर्गों से विभूषित पटुता तुला में 'टु' से ट वर्ग (ट् ठ् ड् ढ् ण्) एवं तु सेत वर्ग (त् थ् द् ध् न्) चुरा में 'चु' से वर्ग (च् छ् ज् झ् ञ्) रा रूप धन जिसमें है । स्वर अकारादि एवं उनके अङ्गों के नाम के अपूर्व ज्ञान से समुन्नत हुई कान्ति से साध्वी सुलोचना जो सभी वर्णों एवं मात्राओं की अधिकारिणी है मेरे मन पर अधिकार कर चुकी है, यह जयकुमार की उक्ति है । इस प्रकार यहाँ जयकुमार द्वारा सुलोचना के मुख श्री के वर्णन प्रसङ्ग में कहा गया है जिसमें कवि ने अपने व्याकरण ज्ञान का अपूर्व प्रदर्शन किया
है ।
ज्योतिर्विद् भूरामल जी
सप्त सर्ग में सुलोचना की प्राप्ति हेतु अनेक राज कुमारों के आगमन प्रसङ्ग में दिखाया गया है कि मारकेश दशाक्रान्त व्यक्ति जैसे हितावह उपदेश नहीं सुनता वैसे ही भरतं पुत्र सुलोचनाभिलाषी दुर्दमनीयान्तःकरण अर्ककीर्ति भी अमृत के समान मंत्री के उपदेश की अवहेलना कर रणनिमित्त अथवा मरण निमित्त उत्कंट दोष से भर गया । यहाँ मारकेश शब्द का उल्लेख