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________________ 4/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन में आपने क्षुल्लकव्रत ग्रहण किया । आपकी रचनाएँ श्री 105 क्षुल्लक सन्मत सागर जी के पास विद्यमान रहीं हैं । क्षुल्लक जी से उन ग्रन्थों के प्रकाशन के सम्बन्ध में अनेकशः बातचीत चली । महाराज श्री इस विषय में उदासीन थे। फिर भी क्षुल्लक जी ने यह व्यक्त किया कि यदि समाज की इच्छा हो तो अत्यन्त प्रसन्नता की बात है । परिणामतः महाराज जी के नाम से एक ग्रन्थमाला स्थापित कर उनके ग्रन्थों को प्रकाशित करने का निश्चय किया गया और उस ग्रन्थमाला के प्रधान सम्पादक श्री हीरालाल जी सिद्धान्त शास्त्री बने । वि.सं. 2014 में आपने मुनि दीक्षा ग्रहण की । एक जून 1973 में नसीराबाद में स्वास्थ्य की समीचीनता न होने के कारण अपने योग्य शिष्य श्री 108 विद्यासागर जी को अपना आचार्य पद भार अर्पण कर समाधि ग्रहण की । पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी के कृतित्व संस्कृत ग्रन्थ : 1. दयोदय चम्पू : इस ग्रन्थ रत्न में अहिंसा धर्म का माहात्म्य व्यक्त कर एक धीवर के उद्धार की कहानी प्रस्तुत की गयी है । गद्यपद्यमयात्मक लघुकायात्मक आपके इस संस्कृत रचना का सर्वप्रथम प्रकाशन हुआ । हिंसक व्यक्ति जीवघात से यदि लेशमात्र भी हत्या न करने का नियम बाँध लेता है तो वह किस प्रकार अभ्युन्नति करता है यहाँ इसी का विवेचन किया गया है । यह कथा मृगसेन धीवर को लेकर निबद्ध की गयी है । 2. सुदर्शनोदय : नौ सोनिर्मित यह एक काव्य है जिसमें चम्पापुरी के एक पत्नी व्रतधारी सेठ श्री सुदर्शन जी का अनेक प्राचीन एवं अर्वाचीन छन्दों में चरित्र चित्रित किया गया है । सेठ को यहाँ धीरोदात्त नायक के रूप में निबद्धकर ऐसी कौतूहल जनक कथा प्रस्तुत की गयी है, जिसे आद्योपान्त पढ़ने की उत्सुकता शांत नहीं होती, प्रतिसर्ग वह उत्सुकता बढ़ती ही जाती है । स्त्रीजनित उपसर्गों के आने एवं नाना प्रकार के हावभाव विलासी के दिखायी देने पर भी सेठ सुदर्शन अपने दृढ़ ब्रह्मचर्य से लेशमात्र भी विचलित नहीं होते और मेरु के समान स्थिर होने लगते हैं । प्रसन्न एवं गम्भीर वैदी रीति से प्रवहमान इस सरस्वती के प्रवाह में सहृदय पाठकों के मानस मत्स्य विलास पूर्वक उदवर्तन-निवर्तन करते रहते हैं। रचना अत्यन्त सरस एवं रम्य है। 3. वीरोदय : 22 सर्गात्मक इस महाकाव्य में भगवान् महावीर के पुरवा भील के भव से लेकर तीर्थंकर होकर निर्वाण प्राप्त करने तक के तैंतीस भवों का सुन्दर चरित चित्रण किया गया है । प्रसंगानुसार बीच-बीच में अत्यन्त प्रभावोत्पादक धर्मोपदेश दिये गये हैं। ग्रन्थकार की शैली संस्कृत के सुप्रसिद्ध महाकवि कालिदास, भारवि, माघ एवं श्री हर्ष की काव्य शैली का स्मरण कराती है । इसके अनुशीलन से ग्रन्थकर्ता का प्रगल्भ पाण्डित्य एवं कवित्व शक्ति स्पष्ट होती है ।
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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