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________________ संक्षेप में विचार किया है । , द्वितीय अध्याय में मैंने जयोदय महाकाव्य की कथावस्तु, उसका विभाग, स्रोत एवं ऐतिहासिकता पर प्रकाश डाला है । तृतीय अध्याय में महाकाव्य के लक्षण को लेकर जयोदय महाकाव्य के महाकाव्यत्व को सिद्ध करने का प्रयास किया गया है । यहीं पर महाकाव्यों की परम्परा में जयोदय का स्थान निर्धारित करते हुए इस महाकाव्य पर पूर्ववर्ती महाकाव्यों की छाया पर दृष्टिपात किया गया है । चतुर्थ अध्याय में रस का काव्य शास्त्रीय स्वरूप प्रस्तुत करते हुए अभीष्ट काव्य में विभिन्न रसों की स्थिति पर परिचर्चा की गयी है । पंचम अध्याय में अलङ्कार शास्त्र का सामान्य परिचय देकर प्रकृत महाकाव्य में आये हुए अलङ्कारों का विवेचन किया गया है । षष्ठ अध्याय में ध्वनि, गुण और रीति पर क्रमशः विचार किया गया सप्तम अध्याय में औचित्य का विवेचन करते हुए प्रकृत महाकाव्य के कतिपय दोषों पर भी दृष्टिपात किया गया है । अष्टम अध्याय में छन्दः शास्त्र का सामान्य परिचय देकर जयोदय के छन्दोयोजना पर विचार किया गया है । नवम अध्याय में उपचार वश उपसंहार भी जुड़ा हुआ है । अनन्तर परिशिष्ट खण्ड एक में जयोदय महाकाव्य में प्रस्तुत स्थान, पात्र, दार्शनिक शब्दसमूह का विवेचन करते हुए जयोदयगत ललित सूक्तियों को भी प्रस्तुत किया गया है। परिशिष्ट खण्ड दो में सहायक ग्रन्थों की सूची दी गयी है ___ अपनी अमूल्य कृतियों से संस्कृत साहित्य को समृद्ध करने वाले स्वर्गीय आचार्य 108 श्री ज्ञानसागरजी महाराज की समस्त कृतियों पर कार्य नहीं कर सका, इसका मुझे हार्दिक क्लेश है तथापि संस्कृतनिष्ठ जनों के समक्ष प्रस्तुत शोध प्रबन्ध को समर्पित करते हुए इतना तो सन्तोष है ही कि इसके माध्यम से संस्कृत जगत् में एक और कवि और उसकी रचना को लोगों के समक्ष लाने के. श्रेय का अनायास ही भागी बन गया हूँ । जयोदय महाकाव्य पर शोध कार्य करने की अनुमति एवं ग्रन्थ का सहयोग प्रदान करने वाले गुरुवर, डॉ. राम अवध पाण्डेय जी का मैं आजीवन
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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