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________________ अष्ठम अध्याय / 199 प्रकृत 'जयोदय महाकाव्य' में अधिकांशत: उपेन्द्रवज्रा, इन्द्रवज्रा, उपजाति, वसन्ततिलका, शार्दूलविक्रीडित, मालिनी, सुन्दरी, द्रुतविलम्बित, वंशस्थ मन्दाक्रान्ता आदि जैसे छन्दों का प्रयोग बहुलता से किया गया है । यहाँ हम प्रकृत महाकाव्य के प्रत्येक सर्ग में आये हुए छन्दों की विवेचना सर्ग-क्रम से प्रस्तुत करेंगे । जयोदय महाकाव्य में छन्दों-योजना इस महाकाव्य में जिस प्रकार सर्गों की बहुलता है, वैसे ही छन्दों की भी संख्या अनन्त प्राय है । प्रथम सर्ग उपेन्द्रवज्रा छन्द से आरम्भ किया गया है । उपेन्द्रवज्रा : केदार भट्ट प्रणीत वृत्त रत्नाकार में इसका लक्षण इस प्रकार किया गया है - जिस छन्द में जगण, तगण, जगण उसके पश्चात् दो गुरु हो उसे उपेन्द्र वज्रा कहते हैं । इसी प्रकार छन्दोमञ्जरी में भी दिया गया है कि इन्द्रवज्रा के ही प्रथम अक्षर को लघु कर देने से 'उपेन्द्रवज्रा' छन्द होता है" । उदाहरण जैसे : "श्रियाश्रित सन्मतिमात्मयुक्तयाऽखिलज्ञमीशानमपीतिमुक्तया । तनोमि नत्वा जिनपं सुभक्त्या जयोदयं स्वाभ्युदयाय शक्तया ॥18 इस सर्ग में इक्यासी श्लोक पर्यन्त उपेन्द्रवज्रा छन्द का प्रयोग किया गया है । श्लोक संख्या बयासी से उपजाति छन्द दिखाया गया है - उपजाति : उपजाति का लक्षण वृत्तरत्नाकर के तृतीय अध्याय में श्लोक संख्या तीस में दिया है कि जहाँ इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा आदि छन्दों के चरण मिलाकर निर्माण किये जाते हैं वहाँ दो वृत्तों का सांकर्य होने से उपजाति छन्द कहलाता है। उपजाति के चौदह भेद टीकाकार बताये हैं जो वक्ष्यमाण पंक्तियों में अवलोकनीय हैं - (1) कीर्ति, (2) वाणी, (3) माला, (4) शला, (5) हंसी, (6) माया, (7) जाया, (8) वाला, (9) आर्द्रा, (10) भद्रा, (11) प्रेमा, (12) रामा, (13) ऋद्धि, (14) बुद्धि प्रकृत महाकाव्य में प्राप्त उक्त प्रभेदों का कुछ उदाहरण द्रष्टव्य है वाणी : जहाँ प्रथम चरण इन्द्रवज्रा द्वितीय उपेन्द्रवज्रा तृतीय चतुर्थ इन्द्रवज्रा हो उसे वाणी नामक उपजाति कहते हैं । यथा - "श्रीचम्पका एनमनेनसन्तु तिरःशिरश्चालनतस्तुवन्तु । कोषान्तरुत्थालिकदम्भवन्तः पापानि वापायभियोगिरन्तः ॥'
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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