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________________ 200/ जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन माला : जिसमें पूर्वार्ध उपेन्द्रवज्रा उत्तरार्ध इन्द्रवज्रा हो उसे माला नामक उपजाति कहते हैं । यथा - "अशोक आलोक्य पतिं ह्यशोकं प्रशान्तचित्तं व्यकसत्सुरोकम्। रागेण राजीवदृशः समेतं पादप्रहारं स कुतः सहेत ॥120 शला : जिसमें पूर्वार्ध इन्द्रवज्रा तृतीय चरण उपेन्द्रवज्रा चतुर्थ इन्द्रवज्रा हो उसे शला नामक उपजाति कहते हैं । जैसे : "आराम आरात्परिणामधामभूपद्मकच्छ अदृशाभिरामः ।। विलोकयँल्लोकपतिं रजांसि मुञ्चत्यसौ चानुतरँस्तरांसि ॥121 रामा : जिसमें पूर्वार्ध इन्द्रवज्रा और उत्तरार्ध में उपेन्द्रवज्रा हो उसे रामा नामक उपजाति कहते हैं । उदाहरण - "यस्यान्तरङ्गेडदभुतबोधदीपः पापप्रतीपं तमुपेत्य नीपः । स्वयं हि तावजऽताभ्यतीत उपैति पुष्टिं सुमनःप्रतीतः ॥"22 ऋद्धि : जहाँ प्रथम चरण उपेन्द्रवज्रा द्वितीय इन्द्रवज्रा तृतीय एवं चतुर्थ उपेन्द्रवज्रा हो उसे ऋद्धि नामक उपजाति कहते हैं, जिसका एक उदाहरण प्रस्तुत है - "परोपकारैकविचारहारात्कारामिवाराध्य गुणाधिकाराम् । अलङ्करोत्याम्रतरुर्विशेषं सकौतुकोऽयं परपुष्ट वेशम् ॥123 श्लोक सतासी में भी माला नामक उपजाति को कवि ने दिखाया है । अनुष्टुप् : . महाकवि भूरामल शास्त्री जी के ग्रन्थ में प्रयुक्त पद्यों की परिगणना से यह सुस्पष्ट होता है कि अनुष्टुप् उनका अपर प्रिय छन्द है । पूर्ववर्ती महाकवि कालिदास ने अनुष्टुप् का प्रयोग विस्तृत कथा के संक्षेप साधारण घटनाओं के वर्णन, उपदेश प्रदान करने आदि स्थलों में प्रयुक्त किया है। शास्त्री जी के भी महाकाव्य में कुछ ऐसी ही घटनाओं में यह वृत्त प्रयुक्त है । विषय गाम्भीर्य के अवसर का प्रदर्शन कविगण छोटे-छोटे वृत्तों के माध्यम से उपस्थित करते हैं । 'जयोदय महाकाव्य' का प्रत्येक सर्ग इसी वृत्त में उपनिबद्ध है । आचार्यों ने इस वृत्त के सभी चरणों में पंचम वर्ण को लघु एवं षष्ठ वर्ण को गुरु स्वीकार किया है । द्वितीय और चतुर्थ चरण में सप्तम वर्ण लघु, प्रथम और तृतीय में गुरु होता है - "पंचमं लघु सर्वत्र सप्तमं द्विचतुर्थयोः . । . षष्ठं गुरु विजानीयादेततद्यस्य लक्षणम् ॥124 इस छन्द के प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं । महाकवि ने अपने ग्रन्थ में इस नियम का पूर्णतः परिपालन किया है । यथा -
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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