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________________ षष्ठ अध्याय / 141 यहाँ इस पद्य में युद्ध में अनुरक्त एक वीर का वर्णन करते हुए कहा गया है कि - आदरपूर्वक युद्ध करने वाले किसी मनुष्य का शरीर प्रसन्नता के कारण रोमांचित हो उठा। परिणामतः उस रोम उठने के कारण गिरते हुए कवच को युद्ध संलग्न वह वीर नहीं जान सका। इस पद्य में "भ्रश्यत्स्फुटित्वोल्लसनेन वर्म रणोत्थशर्म प्रयुद्धयता" इन पदों में भ र, श्, य, त्, स, त, व, ल् ल, त् थ, र, ग, द, ध य, वर्गों के संयुक्त होने के कारण ओज गुण है । इसी प्रकार आगे के श्लोकों में भी वीर रस के प्रसङ्ग में ओज गुण का सन्निवेश हुआ है जो प्रस्तुत है___ "नियोधिनां दर्पभृदर्पणालैर्यव्युत्थितं व्योम्नि रजोऽघुिचालैः । . सुधाकशिम्बे खलु चन्द्रबिम्बे गत्वा द्विरुक्ताङ्कतया ललम्बे ॥12 यहां 'दर्पभृदर्पणव्युत्थितंव्योम्नि, सुधाकशिम्बे, चन्द्रबिम्बे, द्विरुक्ताङ्क, ललम्बे' आदि पदों में र, प, त् थ म्, न, म्, ब वर्गों में संयुक्ताक्षरादि प्रयोग से ओज गुण की पुष्टि होती है। इसी तरह अन्यत्र भी रौद्र रस के प्रसङ्ग में ओज गुण का सन्निवेश महाकवि की कुशाग्रता की झलक देती है । यथा "क्षमायामस्तु विश्रामः श्रमणानान्तु भो गुण । सुराजां राजते वंश्यः स्वयं माञ्चक मूर्धनि ॥"13 इस पद्य में 'क्ष', 'त्र', 'अ', 'श्य' आदि वर्गों का विन्यास ओजोगुण का वलासक प्रसाद गुण : ___ जैसे सुखी हुई लकड़ी को अग्नि शीघ्र ही अपनी दाहकता से व्याप्त कर देता है (अथवा जैसे स्वच्छ जल समूह में पड़ी हुई वस्तु शीघ्र ही प्रतीत होने लगता है) उसी प्रकार जहाँ अर्थ शीघ्र ही चित्त में व्याप्त हो जाता है, वहाँ प्रसाद गुण होता है । यह प्रसाद गुण सम्पूर्ण रस और सम्पूर्ण रचनाओं में रहता है । काव्यप्रकाशकार मम्मट भी अष्टम उल्लास में कहते "शुल्के न्धनाग्निवत् स्वच्छ जलवत्सहसैव यः15 जयोदय महाकाव्य में प्रसाद गुण भी अपना व्यापक स्थान रखता है। प्रसाद गुण से सम्पन्न इस महाकाव्य के एक मनोरम रचना पर दृष्टिपात करें "मनो ममैकस्य किलोपहारः बहुष्वथान्यस्य तथाऽपहारः । किमातिथेयं करवाणि वाणिः हृदेऽप्यहृद्येयमहो कृपाणी ॥''16 यहाँ इस पद्य में यह व्यक्त किया गया है कि स्वयंवर में उपस्थित राजकुमारी सुलोचना
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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