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140 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
माधुय के व्यंजक वर्ण: वर्ग के अन्तिम अक्षर (वर्ण) (ङ, ञ, ण, न, म) संयुक्त हो परन्तु ट, ठ, ड, ढ ये वर्ण जो श्रुति कटुत्व के उत्पादक हैं ये न हो । र और ण लघु होकर आवें एवं रचना सभासाभाव हो अथवा अल्प पदों का समास हो तथा कोमल वर्णों का विन्यास हो तो माधुर्य गुण कहा जाता है ।
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जयोदय महाकाव्य में माधुर्य बहुशः स्थलों में दर्शनीय है । असमस्त पदावली आदि से पूर्ण माधुर्य दसम सर्ग में सुलोचना वर्णन के प्रसङ्ग में दर्शनीय है "कुसुमगुणितदामनिर्मलं सा मधुकररावनिपूरितं सदंसा । गुणमिव धनुषः स्मरस्य हस्त-कलितं संदधती तदा मप्रशस्तम् ॥"
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इस पद्य में अल्प समास वाले पद दिये गये है तथा संयुक्ताक्षरों का बाहुल्य नहीं है। इस दृष्टि से माधुर्य गुण भरा हुआ है । इसी प्रकार आगे भी इसी सर्ग में मनोरम स्थलों की एक झलक प्रस्तुत है -
" नन्दीश्वरं सम्प्रति देवतेव पिकाङ्गना चूतक सूतमेव । वस्वौकसारा किमिवात्रसाक्षीकृत्याशु सन्तं सन्तं मुमुदे मृगाक्षी ॥8
इस पद्य में 'पिकाङ्गना' में ङ, 'ग' का संयोग माधुर्य का व्यंजक है । 'नन्दीश्वर' में 'न' 'द' का संयोग, 'सन्त' में 'न्' 'त' का संयोग वर्गान्त वर्ण संयुक्त होने के कारण माधुर्य है तथा अधिक समस्त पद न होने से रचना मधुरा है ।
ओज गुण :
सहृदयों का चित्त जिससे विस्तार को प्राप्त हो ऐसे दीप्ति को ओजगुण कहते हैं 1 यह ओज क्रमशः वीर, बीभत्स, रौद्र रसों में उत्तरोत्तर अधिक रूप में रहता है । ओज गुण के व्यंजक वर्ण : क वर्ग, च वर्ग, ट वर्ग, त वर्ग, प वर्ग के तृतीय ज, ब, ग, ड, द एवं आद्य क, च, ट, त प ये अपने से अन्तिम अर्थात प्रथम वर्ण (क, च, ट, त, प) का द्वितीय वर्ण (ख, छ, ठ, थ, फ) के साथ एवं तृतीय (ग, ज, ड, द, ब) का चतुर्थ (घ, झ, ढ, ध, भ) का संयोग हो एवं ट, ठ, ड, ढ वर्ण रहें तथा रेफ का ऊपर की स्थिति रूप से अथवा नीचे संयुक्त रूप में स्थिती हो । तालव्य शकार मूर्धन्य षकार कुछ गुण के व्यंजक होते हैं । इसी प्रकार रचना समास बहुला एवं उद्भट अक्षरों से युक्त हो तो ओज गुण कहलाता है।
जयोदय महाकाव्य में ओज गुण का बहुशः प्रयोग रम्य ढंग से हुआ है। इसी परिवेश में ओज गुण का एक मनोरम उदाहरण पर दृष्टिपात कीजिए -
'भ्रश्यत्स्फुटित्वोल्लसनेन वर्मनाज्ञातमाज्ञातरणोत्थशर्म । प्रयुद्धयता केनचिदादरेण रोमाञ्चितायाञ्च तनौ नरेण ॥'
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