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________________ पंचम अध्याय / 117 एकान्त में अपनी अर्थात् आसन को प्राप्त हुआ । काय क्लेश से रहित होना एवं काय क्लेश को सहन करना ये भी विरुद्ध वस्तु है । इसका परिहार है कि शारीरिक क्लेश से वह कभी पराजित नहीं हुआ और पंचक्लेश को सहन किया । इसके कुछ उदाहरण और दर्शनीय हैं -- (अ) "नीरसत्वमथावाच्छ त्समीनपरिणामवान् । नदीनभावमापापि निर्जरोक्तगुणाश्रयात् ॥10 (ब) "नानात्मवर्तनोप्यासीद् बहु लोहमयत्वतः । समुज्वल गुणस्थानग्रहोऽभुत्तन्तु वायवत् ॥108 (स) "क्षमाशीलोऽपि सन् कोपकरणैक परायणः । बभूव मार्दवोपेतोऽप्यतीव दृढ़ धारणः ॥109 (द) "अप्यार्जवश्रिया नित्यं समुत्सवक मङ्गतः । . पावनप्रक्रि योऽप्यासीत्तदाशौचपरायणः ॥"110 (य) "श्री युक्तदशधर्मोऽपि नवनीताधिकारवान् । तत्वस्थिति प्रकाशाय स्वात्मनैकायितोऽप्यभूत् ॥'111 इसके अतिरिक्त अन्यत्र सर्गों में भी इसी प्रकार देखने को मिलता है । 21. विभावनाः जहाँ हेतु के बिना कार्योत्पत्ति बतायी जाय यद्यपि हेतु के बिना कोई कार्य होता नहीं है । तथापि कारणान्तर की अपेक्षा करके मुख्य कारण न कहकर कहा गया हो, कारणान्तर कहीं उक्त रहता और कहीं अनुक्त इस प्रकार विभावनालङ्कार के दो भेद भी होते हैं । उदाहरण - "फुल्लवत्यसङ्गाधिपतिं मुनीनमवेक्ष्यमाणो बकुलः कुलीनः । विनैव हालाकुरलान् वधूनां व्रताश्रितिं वागतवानदूनाम् ॥'113 परिग्रह शून्य लोगों के अधिपति मुनिराज को देखकर कुलीन मौलश्री का वृक्ष वधुओं के मद्यपूर्ण कुल्ले के बिना ही विकसित हो गया । (यह कवि समय ख्याति है कि मौलश्री का वृक्ष मद्यपान कर सुन्दरियों के कुल्ले से विकसित होता है) कवि समय ख्याति के प्रसङ्ग में साहित्यदर्पणकार आचार्य विश्वनाथ ने लिखा है कि बिना मद्यपूर्ण मुख के कुल्ले के ही मौलश्री के विकसित होने का वर्णन किया गया है । अतएव विभावना अलङ्कार है । मुनिराज को देखकर विकसित होने के कथन से उक्त निमित्तक विभावना अलङ्कार है,114 जो विनोक्ति से अनुप्राणित है ।
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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