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108/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन की माला अत्यन्त प्रशस्ता तरुणी सुलोचना जयकुमार को प्राप्त हो रही है । आश्चर्य है कि मणि चरणों में बाँधी जा रही है । मणि का पैर से सम्बन्ध हो असम्भव है ।।
परन्तु यहाँ शत्रुवर्ग के द्वारा यह जयकुमार एवं सुलोचना के सम्बन्ध में बताया गया है । इस प्रकार निदर्शना अत्यन्त सुस्पष्ट है ।
सम्भवद् वस्तु सम्बन्ध का एक उदाहरण प्रस्तुत है - "सुषमाप महर्घतां परैर्भुवि भाग्यैरिव नीतिरुज्ज्वलैः । सुतनोस्तु विभूषणैर्यका खलु लोकै रवलोक नीयका ॥
इस पद्य में सुलोचना के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है कि सुन्दरी सुलोचना का सौन्दर्य लोगों के लिये नितान्त दर्शनीय रहा, जो इस भू -मण्डल में ऊँचे भाग्य के कारण नीति की भाँति उज्जवल निर्मलता एवं श्वेत आभूषणों से अत्यन्त शोभा को प्राप्त की।
___ यहाँ श्वेत भूषणों का सम्बन्ध सुलोचना से कराकर शोभा को बढ़ा दिया गया है, जो निर्दोष से सम्बद्ध नीति का नीति की भाँति कहकर पारम्परिक उपमानोपमेय भाव सम्भवद् सम्बन्ध निदर्शना बतायी गयी है ।।
इसी प्रकार द्वादश से गृहीत उदाहरण में भी यह अलङ्कार मनोहर है - "निशेन्दुना श्रीतिलकेन भालं सरोब्जबृन्देन विभात्यथालम् । महोदया अस्ति सुसम्पदैवं युष्माभिरकस्माक महो सदैव ।'76
प्रकृत श्लोक में यह वर्णन है कि कन्या पक्ष वालों ने बारातियों से कहा कि जिस प्रकार रात्रि चन्द्रमा से, ललाट तिलक से, सरोवर कमलों से शोभित होता है, उसी प्रकार आप लोगों से हम लोगों की सदा ही शोभा है ।
यहाँ निदर्शना अलङ्कार का चित्ताकर्षक स्वरूप है । 13. दृष्टान्त : दृष्टान्तालङ्कार जयोदय महाकाव्य में अत्यन्त व्यापक है । जहाँ उपमानोपमेय
में विद्यमान साधारण धर्म का दो वाक्यों में बिम्ब प्रतिबिम्ब भाव रूप से वर्णन हो वहाँ दृष्टान्तालङ्कार होता है । यह साधर्म्य वैधर्म्य के भेद से दो प्रकार का होता है । जहाँ साधारण धर्म (सादृश्य) के अभिधायक पद होंगे या होते हैं, वहाँ साधर्म्य दृष्टान्तालङ्कार होगा। जहाँ उसका अभाव होगा वहाँ वैधर्म्य दृष्टान्तालङ्कार होगा। तात्पर्य वश से प्रतीयमान स्थिति होने के कारण सादृष्य प्रतीति हो जाती है । साधर्म्य से होने वाले दृष्टान्त का एक उदाहरण देखिये - "वात्ययाऽत्ययिनि तूलकलापे तादृशी स्मरशरार्पितशापे । वेगिता तु समभूत् कृतचारे सा भुवामधिभुवां परिवारे ॥78 यहाँ कहा गया है कि सुलोचना के स्वयंवर में पहुँचने के इच्छुक कामवाणविद्ध भूपतियों