________________
102/ जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक - 5. सन्देहालङ्कार : जहाँ उपमेय में कविप्रतिभोत्थापित उपमान का संशय हो वहाँ सन्देहालङ्कार
होता है । वस्तु के स्वभावतः वर्णन में सन्देहालङ्कार होता ही नहीं है जैसे 'स्थाणुर्वा पुरुषो वा,''यह ठूठा पेड़ है या मनुष्य हैं, यह यथार्थ स्थितिक स्वरूप है यहाँ सन्देहालङ्कार नहीं होगा । यह शुद्ध निश्चयगर्भ और निश्यान्त भेद से तीन प्रकार का होता है । जहाँ आदि मध्य और अन्त संशय स्थिति में ही वाक्य की समाप्ति हो वहाँ शुद्ध सन्देहालङ्कार होता है तथा अर्थतः आदि और अन्त में संशय होता हो मध्य में निश्चयात्मक अर्थ होता हो वहाँ निश्चय गर्भ सन्देहालङ्कार होता है । जहाँ आदि में संशय हो अन्त मैं निश्चय होता हो वहाँ निश्चयान्त सन्देहालङ्कार होता है।
जयोदय महाकाव्य में सन्देहालङ्कार का व्यापक स्थान नहीं है तथापि पर्याप्त मात्रा में उसका सन्निवेश विद्यमान है । 'स्थाली पुलाक न्याय' से एक रम्य पद्य दर्शनीय है -
"अलिकोचितसीम्नि कुन्तला विबभूवुः सुतनोरनाकुलाः । सुविशेषक दीपसम्भवा विलसन्त्योऽज्जनराजयो न वा ॥''54
प्रकृत पद्य में सुन्दरी सुलोचना के भाल प्रदेश में शोभायमान केशों का वर्णन करते हुए महाकवि ने यह कहा है कि ये केश अंजन की राशि है, या कृष्ण वर्ण केश है ।
इसी प्रकार अन्य स्थलों में भी इस अलङ्कार का महत्वशाली स्थान है । 6. भ्रान्तिमान् अलङ्कार : भ्रान्तिमान् अलङ्कार भी यहाँ बहुशः प्रयुक्त हुआ है। इसका लक्षण
है, जहाँ कवि प्रतिभोत्थापित अन्य वस्तु में सादृश्य वश अन्य वस्तु की भ्रान्ति हो वहाँ भ्रान्तिमान् अलङ्कार होता है । कवि प्रतिभोत्थापित न होने पर यह अलङ्कार नहीं होगा इसलिये लोग व्यवहत भ्रान्ति में जैसे 'सुक्तौरजतम्' यहां भ्रान्ति ज्ञान है । किन्तु यहाँ अलङ्कार नहीं होगा क्योंकि कविप्रतिभोत्थापित नहीं है भ्रान्ति मात्र ज्ञान है । जयोदय महाकाव्य के निम्नाङ्कित श्लोक में इस अलङ्कार का चमत्कार देखने योग्य
" उद्धृतसद्धूलिघनान्धकारे शम्पा सकम्पा स्म लसत्युदारे । रणाङ्गणे पाणिकृपाणमाला चुकूजुरेवं तु शिखण्डिबालाः॥''56
प्रकृत श्लोक में यह वर्णित है कि युद्धस्थल में उठी हुई धूलि से आकाश अन्धकार से आछन्न हो गया । सर्वतः अन्धकाराच्छन्नता वश मेघ की प्रतीति होने लगी । उस समय में योद्धाओं के हाथ में चमकती हुई एवं हिलती हुई तलवारों की पंक्तियाँ मयूर शावकों को यह प्रतीत हुई कि बिजली है अतएव वे केकावाणी बोलने लगे।
यहाँ धूलि से आच्छादित होने से अन्धकार बढ़ जाने के कारण मेघ की प्रतीति एवं उम्में हिलती और चमकती हुई तलवारें बिजली हैं। यह मोर के बच्चों का प्रतीत हुआ, जिससे