SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (4) कहा कि राजनगर के श्रावकों की श्रद्धा तुम्हीने विपरीत की है। इसलिए वह तुमसे ही सुधर सकती है। तुम वहां जाकर उन्हें समझा दो। भीखणजी ने गुरु की आज्ञा स्वीकार की और वहां के श्रावकों की श्रद्धा को शुद्ध करने राजनगर आये। परन्तु भीखणजी के साथियों ने भीखणजी को वैसा करने से मना कर दिया और उन्हें अपने सिद्धान्त पर डटे रहने की राय दी। भीखणजी गुरु पर तो नाराज थे ही उन्हें साथियों की बातें अच्छी मालूम हुई और उन्होंने उन श्रावकों को ऐसा कुछ भी उपदेश नहीं किया जिससे उनकी श्रद्धा ठीक होती। बल्कि अपनी पूर्व प्ररूपणा की ही पुष्टि की। इस प्रकार भीखणजी ने गुरु की आज्ञा का फिर से उल्लंघन किया। इसके पश्चात भीखणजी बगड़ी गांव में जब अपने गुरु से मिले तो अपने दुराग्रह पर धृष्टता पूर्वक डटे रहे। गुरु के आदेश की कोई परवाह नहीं की। तब सम्वत् 1815 चैत सुदी नवमी शुक्रवार के दिन पूज्य श्री ने गोशालक का दृष्टान्त देकर भीखणजी को गच्छ से बाहर कर दिया। पूज्यश्री से गच्छ बाहर किये हुए भीखणजी आदि तेरह जनों ने मिलकर तेरहपन्थ नामक एक शास्त्र विरुद्ध नूतन मत चलाया। ढालें तथा सिद्धान्त की हुण्डी आदि पुस्तकें लिखी। उनमें अपने मिथ्या सिद्धान्तों का विस्तृत वर्णन किया। - भीखणजी के चौथे पाट पर जीतमलजी नाम के एक आचार्य हुए। इन्होंने भ्रम विध्वंसन नामक ग्रन्थ रचकर भीखणजी की उक्तियों का पोषण किया जो शास्त्रों और युक्तियों से सर्वथा
SR No.006168
Book TitleSupatra Kupatra Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherAadinath Jain S M Sangh
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy