SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (3) 6. अपनी सम्प्रदाय के (तेरापंथी) साधुओं के सिवाय समस्त प्राणी कुपात्र हैं, पापी हैं। उनको दान देना तथा किसी प्रकार की उन्हें सहायता देना, उनका विनय करना, माँस भक्षण और व्यसन-कुशील सेवन के समान एकान्त पाप 7. भगवान महावीर स्वामी ने तेजोलेश्या से जलते हुए गोशालक की रक्षा की थी। यह उनकी भूल थी। वे छद्मस्थ होने के कारण चूक गये थे। इस प्रकार बहुत सी बातें भीखणजी ने कही जो मानवता और शास्त्र से विरुद्ध हैं। उनके ग्रन्थों में जगह-जगह वे बातें लिखी हैं। अतः यहां लिखने की आवश्यकता नहीं है। उस समय पूज्य श्री रघुनाथजी महाराज का चातुर्मास सोजत में था। भीखणजी की उक्त प्ररूपणा सुनकर पूज्य श्री के चित्त में बड़ा ही कष्ट हुआ। चातुर्मास समाप्त होते ही भीखणजी पूज्य श्री के पास आये। परन्तु पूज्य श्री के चित्त में विपरीत प्ररूपणा के कारण भीखणजी के प्रति पूर्व भावना में अंतर आ गया था। इसलिए उन्होंने भीखणजी का आदर सत्कार नहीं किया और शामिल में आहार पानी भी नहीं रखा। यह देखकर भीखणजी ने पूज्य श्री से पूछा कि मेरे साथ आहार आदि न करने का क्या कारण है? पूज्य श्री ने कहा कि तुममे शास्त्र विरुद्ध प्रारूपणा की है, आहार सामीपृथकूकामे कमायाहीकारणाहै।। इसके बाद पूज्य श्री मे उन्हें स्सम्झम्या और छम्मस्स मा प्रायश्मिस केकार आहार पामी शामिल कर लिया। पूज्य श्री मे भीखपाजी स्से
SR No.006168
Book TitleSupatra Kupatra Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherAadinath Jain S M Sangh
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy