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________________ (14) "छठे गुणठाणे 18 आस्रव पावे मिथ्यात्व तथा अव्रत आम्रव टल्यो।” वे अठारह आम्रव पाठकों के ज्ञानार्थ उन्हीं के ग्रन्थ के अनुसार नीचे लिख दिये जाते हैं : प्रमाद आश्रव, कषाय आश्रव, जोग आश्रव, प्राणातिपात आश्रव, मृषावाद आश्रव, अदत्तादान आश्रव, मैथुन आश्रव, परिग्रह-अप्मव, श्रोत्रइन्द्री मोकली मेले ते आश्रव, चक्षुइन्द्री मोकली मेले ते आश्रव, घ्राणेन्द्री मोकली मेले ते आश्रव, रसइन्द्री मोकली मेले ते आश्रव, स्पर्शइन्द्री मोकली मेले ते आश्रव, मन प्रवर्तावै ते आश्रव, वचन प्रवर्तावै ते आश्रव, काया प्रवर्ताव ते आश्रव भण्डोपकरण मेलतां अयत्ना करे ते आश्रव, सुई कुसग्गमात्र सेवै ते आश्रव। शिशु हितशिक्षा प्रथम भाग पृष्ठ। 7-18 । यदि आश्रवों का होना कुपात्रता का लक्षण माना जावे तो साधु भी कुपात्र ही ठहरेंगे। यदि इन आश्रवों के होने पर भी साधु कुपात्र नहीं होता है तो फिर श्रावक कुपात्र कैसे हो सकते हैं। अतः चर्चावादी महाशय का लक्षण अयुक्त तथा जैनागम एवं युक्ति से विरुद्ध है। चर्चावादी महाशय के बताये हुये लक्षण तो अयुक्त हैं ही। साथ ही भीखणजी आदि श्रावक को अव्रत के हिसाब से कुपात्र बताते हैं, वह भी मिथ्या है । क्योंकि श्रावक को अव्रत की क्रिया नहीं लगती है। यह भगवती सूत्र में स्पष्ट लिखा है। विरतिभाव आने पर जीव को अविरति की क्रिया ही जब नहीं लगती है तब वह अविरति के कारण कुपात्र कैसे माना जा सकता है। भगवती का वह पाठ भी पाठकों के ज्ञानार्थ लिख
SR No.006168
Book TitleSupatra Kupatra Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbikadutta Oza
PublisherAadinath Jain S M Sangh
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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