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जैन संस्कृत महाकाव्य
कथानक को लेकर उसे उसके मूल परिवेश तथा वातावरण में प्रस्तुत किया है। मण्डन ने अलंकरण-प्रधान समवर्ती महाकाव्य-शैली का आत्मसात् करके अपनी सुरुचि से उसे संयम के वृत्त में रखा है। उसने कुछ स्थलों पर विकट समासान्त शैली में अपने कौशल का मनोयोगपूर्वक प्रकाशन किया है, किंतु सब मिला कर उसका काव्य अधिक अलंकृत नहीं है।