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काव्यमण्डन : मण्डन
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औपनिषदिक स्वरूप कहा जा सकता है । पौराणिक रूप में वे जगत् की उत्पत्ति, रक्षा तथा संहार के कारण हैं। वे नित्य हैं। उनका न आदि है, न अन्त । वे भुक्ति तथा मुक्ति के दाता हैं। उनकी पूजा मुख्य देवता के रूप में की जाती थी। पीठ के मध्य में स्थापित शंकर के चारों ओर गणेश, ग्रहपति, गिरिजा तथा कृष्ण की स्थापना, गौण देवों के रूप में की जाती थी ।५२ हृदय से की गयी शंकर की भक्ति से अभीष्ट की प्राप्ति होती है ।५२ अघोरपंचाक्षरी मन्त्रराज से उनकी स्तुति मोक्षदायक मानी गयी है ।५४ उनके अन्य पौराणिक तत्त्वों में चंद्रकला, भस्म, गंगा, जटाजूट, प्रचंड अट्टहास, अन्धकवध, त्रिशूल, पंचवक्त्र, यज्ञध्वंस मदनदाह. ताण्डव आदि का भी काव्य में उल्लेख आया है (८.११-१६) । उनके ताण्डव का तो कवि ने अत्यन्त हृदयग्राही वर्णन किया है।
चंचच्चन्द्रकलं चलत्फणिगणं बलाबृहत्कुण्डल
__ क्षुभ्यन्मूर्वधुनीमहोमिपटलीप्रक्षालितानान्तरम् । वेल्लत्कृत्तिरणकपालवलयं प्रेखज्जटान्तं मुहु
गौरीहर्षकरं चिरं पुररिपोनत्यं शिवं पातु वः ॥ ८.४३ दूसरे रूप में शंकर का स्वरूप उपनिषदों के ब्रह्म के समान है। ब्रह्म की भाँति उन्हें 'अक्षर' कहा गया है। वास्तव में वे परब्रह्म हैं । शंकर ही उपनिषदों में ब्रह्म नाम से ख्यात हैं । उन्हें ऊँकार तथा ओंकार पदों से ही प्राप्त किया जा सकता है । वेद तथा उपनिषद् उनके स्वरूप के ज्ञान के माध्यम हैं ।५६
पौराणिक नदियों में गंगा के प्रति कवि की विशेष श्रद्धा है । काव्य में गंगा का निष्ठापूर्वक वर्णन किया गया है, जो युग-युगों में उसके गौरव का सूचक है। चलद्वीचीहस्तबहलतमपंकाविलतनुं
जनं माता बालं सुतमिव दयाधीनहृदया। त्वदुत्संगे गंगे विलुठितपरं पापदमनः
सुधाशुभ्र प्रक्षालयति भवती निर्मलजलैः॥ ५.३०. काव्यमण्डन मण्डन की काव्यप्रतिभा का कीर्तिस्तम्भ है। उसने एक जैनेतर
५२. काव्यमण्डन, ६.१६ ५३. हदि दधे रूपं परं शांकरम् । वही, ५.१८ ____ धार्मिका धूर्जटौ विदधते मनो दृढम् । वही, ६.२२ ५४. वही, ८.१५ ५५. ऊंकारमोंकारपदैकगम्यं तमक्षरं मोक्षरसर्षिचिन्त्यम् । ___ वन्दामहे चोपनिषत्सुगीतं ब्रह्मति यं प्राहुरमी मुनीन्द्राः ॥ वही, ८.३६ ५६. वेदवेदान्तवेद्याय । वही, ८.१३.