________________
जैन संस्कृत महाकाव्य नखशिखप्रणाली का आश्रय लेकर पात्रों के अंगों-प्रत्यंगों के सौन्दर्य का क्रमबद्ध वर्णन किया है और वर्ण्य व्यक्तियों के समग्र सौन्दर्य के समन्वित चित्र भी प्रस्तुत किये हैं। ग्यारहवें सर्ग में द्रौपदी के विस्तृत वर्णन में नारी-सौन्दर्य का सांगोपांग चित्रण हुआ है । वस्तुतः काव्य में नारी-सौन्दर्य का ही प्राधान्य है। आरम्भ में मण्डन ने दर्शक के मन पर पड़ने वाले द्रौपदी के सौन्दर्य के समग्र प्रभाव का सामान्य वर्णन किया है", तत्पश्चात् उसने नखशिखविधि से द्रौपदी के विभिन्न अवयवों के लावण्य का विस्तृत वर्णन किया है। नवीन उपमानों की योजना के कारण उसके सौन्दर्य-चित्र सहजता तथा सजीवता से ओतप्रोत हैं। निम्नलिखित पद्यों में कृष्णा के स्तनों, कटाक्ष, तिलक, केशपाश तथा दृष्टि की तुलना क्रमशः काम के निधि-कुम्भों, कूटयन्त्र, चन्द्रकलंक, गंगा-यमुना की मिश्रित जलराशि तथा मदिरा एवं त्रिपुरविद्या से की गयी है ।
कण्ठस्थलीलोलमहेन्द्रनीलहाराहिराजेन सुरक्ष्यमाणौ । निधानकुम्भाविव गोपनीयौ स्तनावमुष्याः स्मरपार्थिवस्य ॥ ११.३४ कूटयन्त्रं कटाक्षोऽस्या मृगाच्या दृश्यते स्फुटम् । युववातायवो येन पात्यन्ते निकटस्थिताः ॥ ११.३६ कस्तूरीतिलको भाति भालेऽस्या रुचिराकृती। शारदे पार्वणे चन्द्र कलंक इव मंजुलः ॥ ११.४१ एतस्या हरिणीदशस्त्रिभुवनोन्मादाय कादम्बरी कामं कामुककामकन्दलसमुल्लासाय कादम्बिनी । विश्वाकर्षणमोहनस्ववशतः प्रोभावयन्ती क्षणाद् दृष्टि ति महाप्रभावगहना विद्येव सा त्रपुरी ॥ ११.४२ भास्ते केशपाशोऽस्या मुक्ताजालकलापमृत् । बंहीयानकायॆवानोघो गंगायमुनयोरिव ॥ ११.४८
द्रौपदी के नखशिख के अन्तर्गत उसके सर्वातिशायी सौन्दर्य को साकार करने के लिए मण्डन ने व्यतिरेक का भी आश्रय लिया है। प्रस्तुत पद्य में उसके पांव, गति तथा जंघाएं चिर-प्रतिष्ठित उपमानों-हंस तथा कदलीस्तम्भ के सौन्दर्य को पराजित करती हुई चित्रित की गयी हैं ।
अस्याः पदारविन्दे ध्र वमुपहसतो राजहंसान्प्रयाते
माधुर्ये शिजितानां कलकलविलसद्रत्नमंजीरवम्भात् । २३. निर्दग्धं स्मरभूरहं हररुषा ह्य कूरयन्ती पुनः
प्रौढं राजकदम्बकं प्रपुलकं स्वालोकत कुर्वती। श्यामा कामिमनोमयूरनिकरं प्रोन्मादयन्ती मुहुः सेयं भाति नितम्बिनी नयनयोदश्येव कादम्बिनी ॥ काव्यमण्डन, ११.१०