________________
काव्यमण्डन : मण्डन
दृष्टिगत होते हैं । ये कवि के निश्छल प्रकृति-प्रेम के प्रतीक हैं और अपनी यथार्थता तथा मनोरमता के कारण वर्ण्य विषय को मूर्त रूप देने में समर्थ हैं। शरद् ऋतु में वर्षाकाल की मलिनता दूर हो जाती है, हंस मानस से लौट आते हैं, चारों ओर उनका मधुर कलरव सुनाई पड़ता है, दिशाएँ स्वच्छ हो जाती हैं, पृथ्वी काशकुसुमों से भर जाती है. धान पक कर फल के भार से झुक जाते हैं तथा विभिन्न पुष्पों की मादक गन्ध से भरी समीर जनमन को आनन्दित करती है । शरद् के इन उपकरणों का सहज चित्र निम्नांकित पंक्तियों में किया गया है।
नात्याक्षुर्न रजस्वलात्वमखिलाः स्वच्छोदकाः सिन्धवः
प्रोदामप्रमदं वधुः कलगिरः काष्ठासु हंसालयः । दिग्वध्वोऽविमः प्रसावमभितो वक्त्रेष्वमूः साम्बरा
बभ्राजे सुविकाशकाशकुसुमैर्भूमण्डली मण्डिता ॥ ३.३ आवापेषु सरोजसौरमभरभ्रान्तालयः शालयः
पाको कफलौघमारनमिता बम्राजिरे भूरिशः। मन्दं मन्दममी समोरनिवहा वान्ति स्म सप्तच्छदो
निद्वत्कोकनदारविन्दकुमुदामोदच्छटामेदुराः ॥ ३.४ प्रस्तुत पद्य में ग्रीष्म की प्रचण्डता साकार हो गयी है।
ग्रीष्मे धूम्यान्धकाराः ककुम उदभवन्दावदग्धा बनान्ता
___ वास्या सोल्कोहरेणुर्धरणिरनलवन्मुर्मुरीभूतपासुः । नद्यः पर्णैः कषायक्वथिततनुनला वह्निवर्षी विवस्वा
___ पान्याः श्वासोण्यभाजो धिगुदयमसतां जातविश्वोपतापम् ॥ ३.३६ इन पंक्यिों को पढ़ कर गर्मी की चिलचिलाती धूप, आंधी-झक्खड़, खौलते पानी, सूर्य की अग्निवर्षा, तप्त भूमि और दहकती धूल का यथार्थ चित्र अनायास मानसपटल पर अंकित हो जाता है । कहना न होगा, इन स्वभावोक्तियों में मण्डन का कवित्व उत्कृष्ट रूप में प्रकट हुआ है । निस्सन्देह ये पद्य साहित्य की उत्तमोत्तम स्वभावोक्ति यों से टक्कर ले सकते हैं।
प्रकृति के प्रति मण्डन का दृष्टिकोण रूढिवादी है। प्रकृतिवर्णन के अन्तर्गत पूरे एक सर्ग में यमक का प्रयोग करना तत्कालीन काव्यशैली के प्रभाव का परिणाम है । परम्परा से प्रभावित होता हुआ भी मण्डन प्रकृति का कुशल चित्रकार है । सौंदर्यचित्रण
मण्डन प्राकृतिक सौन्दर्य की भाँति मानव-सौन्दर्य का भी चतुर चितेरा है । कवि ने संस्कृत-साहित्य में प्रचलित सौन्दर्य-वर्णन की दोनों शैलियों के द्वारा अपने पात्रों के शारीरिक सौन्दर्य की व्यंजना की है। उसने परम्परागत तथा चिर-प्रचलित