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________________ बंकचूलचरियं ६६ २३. बंकचूल प्रचुर सेना लेकर जाता है और उत्साह पूर्वक युद्ध करता है। उसके मन में किंचित् भी भय नहीं है। २४. उसके पराक्रम के सम्मुख शत्रु सेना ठहर नहीं सकी। क्या सूर्य के सम्मुख अन्धकार टिक सकता है ? २५. धीरे-धीरे शत्रु सेना युद्ध-भूमि को छोड़कर जाने लगी । क्या बलवान् के सम्मुख कोई ठहर सकता है ? २६. अपूर्व विजय प्राप्त कर वह अपने देश आया। राजा का मन बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उसे बहुत सम्मान दिया। २७. उसके सुन्दर शरीर को शत्रु सेना के प्रहार से व्रण-पूरित देखकर राजा के मन में बहुत दुःख हुआ। २८. उसने वैद्यों को बुलाकर उसकी चिकित्सा कराई । किन्तु प्रचुर प्रयत्न करने पर भी व्रण ठीक नहीं हुए। २९. उसकी पीड़ा प्रतिदिन बढ़ने लगी। लेकिन बंकचूल व्याकुल नहीं हुआ। वह उसे अपने कर्मों का फल समझ कर समभाव से सहन करने लगा। ३०. धर्मज्ञ व्यक्ति समागत सभी दुःखों को समभाव से सहन करता है। समभाव से उसके निश्चित ही कर्म निर्जरा होती है। ३१. अधर्मज्ञ व्यक्ति दुःखों के आने पर सदा विलाप करता है । इससे वह नवीन कर्मों का बंधन करता है । अत: दुःख को समभाव से सहन करना चाहिए। ३२. उसकी वेदना को बढ़ती हुई देखकर राजा ने वैद्यों को उपालंभ दिया और कहा – इसे शीघ्र स्वस्थ करो। ३३. राजा के उपालम्भ को सुनकर वैद्यों ने कहा— राजन् ! हम आपके हृदय की वेदना को जानते हैं। ३४. लेकिन घाव बहुत गहरे हैं। अत: औषध कार्य नहीं करती है। अब एक उपाय है जिससे वह स्वस्थ हो सकता है। ३५. राजा ने विस्मित होकर पूछा- वह कौनसा उपाय है? तब एक वैद्य ने आत्मविश्वास पूर्वक इस प्रकार कहा--
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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