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________________ बंकचूलचरियं नवम सर्ग १. जो व्यक्ति अपने उपकारी को भूल जाता है उसे ज्ञानियों ने कृतघ्न कहा है। वह कभी सत्कार नहीं पाता। २-३. जिसके दिए हुए व्रतों से बंकचूल तथा उसकी बहिन के प्राणों की रक्षा हुई और उसने विपुल संपदा प्राप्त की, उस उपकारी आचार्य का बंकचूल प्रतिपल स्मरण करता है और मन में उनके दर्शनों की भावना करता है। ४. शुद्ध हृदय से की हुई भावना कभी निरर्थक नहीं होती । वे आचार्य विहार करते हुए शिष्यों के साथ अचानक वहां आ गए। ५. जिस प्रकार अकल्पित वृष्टि को पाकर किसानों का मन प्रसन्न होता है उसी प्रकार बंकचूल का मन भी आचार्य के दर्शन पाकर आनन्दित हो रहा था। . ६. वह आचार्य की सेवा करता है और उनसे शद्ध धर्म का श्रवण करता है। वह उनके सान्निध्य का लाभ उठाता है । समय को व्यर्थ नहीं गंवाता। ७. व्रतों का महत्व जानकर वह श्रावक-धर्म (श्रावक के बारह व्रत) स्वीकार करता है और उसका दृढता से पालन करता हुआ प्रतिक्षण धर्मजागरण करता है। ८. एक बार उन आचार्य का दर्शन करने के लिए शालिग्रामवासी श्रावक जिनदास आया। ९. तब बंकचूल का उसके साथ परिचय हआ। साधर्मिकता के कारण उनकी परस्पर में प्रका मैत्री हो गई। १०. वहां कुछ समय ठहर कर आचार्य ने विहार कर दिया । बंकल का मन बहुत दुःखी हुआ। ११. उसने विनयपूर्वक आचार्य से निवेदन किया-आप पुन: मुझे यहां दर्शन देना । मुझसे जो अपराध हुआ है उसे क्षमा करें ।
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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