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________________ बंकचूलचरियं १३. संसार का यह विचित्र स्वरूप है कि मनुष्य दूसरे में आसक्त होकर अपने प्रिय को भी छोड़ना चाहता है । इस संसार में कोई भी विश्वासपात्र नहीं है। १४. रानी की स्पष्ट और कामासक्त इस वाणी को सुनकर उसे शीघ्र तीसरे नियम की स्मृति हो गई । अत: वह इस प्रकार सोचने लगा १५. मैंने पहले जिन दो नियमों का पालन किया था उसका मुझे अचिंतित लाभ प्राप्त हुआ था। अत: मुझे तीसरे नियम का भी मन से पालन करना चाहिए। १६. नियम के अनुसार यह मेरी माता के समान है । तब मैं इसके वचन को कैसे स्वीकार करूं? १७. यदि मैं इसके वचन को स्वीकार नहीं करूंगा तो यह निश्चित ही मुझे ताडना देगी। शक्ति संपन्न व्यक्ति क्या नहीं कर सकता? १८. लेकिन मैं दण्ड या प्रलोभन से कभी अपने नियम को नहीं छोडूंगा। चाहे यह मृत्यु दंड दे या अपना सब धन । १९. इस प्रकार सोचकर उसने कहा- मैं तुम्हारे वचन को स्वीकार नहीं करूंगा। उसके इस कथन को सुनकर रानी ने क्रुद्ध होकर कहा २०. यदि तुम मेरे वचन को स्वीकार नहीं करोगे तो उसका क्या फल पाओगे, क्या तुमने हृदय में विचार किया है ? अत: तुम पुन: कुछ सोचो। २१. रानी के इस वचन को सुनकर वह भयभीत नहीं हुआ। वह व्रत रक्षा करने में तत्पर था। अत: निर्भीक होकर रानी को कहा २२. मृत्यु के सिवाय दूसरा क्या दंड हो सकता है ? मैं उसे अभी स्वीकार करने में समर्थ हूं किन्तु व्रत भंग करने में नहीं। २३. अत: तुम्हारी जैसी इच्छा हो वैसा करो किन्तु मैं तुम्हारा कथन नहीं मान सकता। उसके इस स्पष्ट वचन को सुनकर रानी मन में कुपित हुई। २४. इस दुष्ट को अभी प्रचुर ताडना देनी चाहिए । इसने मेरी उपेक्षा की है और मेरे कथन को अस्वीकार किया है।
SR No.006164
Book TitlePaia Pacchuso
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages172
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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