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बंकचूलचरियं
द्वितीय सर्ग
१. मनुष्य अपने जीवन में सदा क्या-क्या कल्पनाएं नहीं करता? उनमें कुछ मनुष्यों की कल्पनाएं सार्थक होती हैं, कुछ की नहीं।
२. प्रचुर उद्यम करने पर भी जिन मनुष्यों की कल्पनाएं सार्थक नहीं होती वे भवितव्यता को दोष देते हैं क्योंकि भवितव्यता के आगे मनुष्य की कुछ नहीं चलती।
___३. भवितव्यता मनुष्य की समस्त शक्ति को नष्ट कर उसका अचिंतित कर देती है । तब मनुष्य कुछ नहीं कर सकता। अत: सभी भवितव्यता को नमस्कार करते हैं।
४. विवाह के बाद पुष्पचूला मन में अपने जीवन के लिए अनेक कल्पनाएं करती है । पर विधि उसे अन्य ही दिखाती है।
५. अचानक काल आकर यौवनावस्था में उसके पति के प्राणों का हरण कर लेता है । सभी स्वजन अश्रुविलाप करते हैं । पर निर्दय काल उसे नहीं छोड़ता।
६. अपने पति को मरा हुआ देखकर वह पुष्पचूला धैर्यहीन होकर प्रचुर विलाप करती है । क्योंकि पति ही स्त्रियों का सहायक होता है।
७. उसके पति की मृत्यु को सुनकर स्वजन लोग शीघ्र उसके घर में आकर अपने हृदय के दुख को प्रगट करते हैं और उसे प्रचुर सांत्वना देते हैं।
८. इस संसार में कौन व्यक्ति किसके दुख को भोग सकता है ? लेकिन वह अपनी सांत्वना देकर दूसरे के दुःख को हल्का कर सकता है।
९. मेरे जामाता का देहान्त हो गया है—यह सुनकर माता-पिता के हृदय पर दुःख का तीव्र प्रहार हुआ। जिसका कोई भी कथन कर नहीं सकता।
.१०. हे मृत्यु ! तूने यह क्या किया? क्या तुम्हें कुछ भी दया नहीं आई? मेरी पुत्री को यौवनावस्था में विधवा कर हे निर्दय ! क्यों तू हंस रहा है ?
११. हे काल ! तुम निश्चय ही क्रूर हो अत: मनुष्य तुम्हें नहीं चाहते । क्रूरता से कोई भी व्यक्ति किसी का प्रिय नहीं हो सकता।