________________
मियापुत्तचरियं
१२४
मंगलायरणं
झाऊण महावीरं, चरमतित्थयरं अणंतबलजुअं । रएमि पाइअगिराअ, मियापुत्तणामंकियं य चरियं ॥१॥ जीवो लहेइ दुक्खं, इहं परत्थ य णिअकम्मेहि सया । णिदंसणं तस्स इणं, विलसेइ मियापुत्तचरियं ॥२॥
मंगलाचरण
१. मैं अनशक्ति संपन्न, चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी का ध्यान कर प्राकृत भाषा में मृगापुत्र चरित्र की रचना करता हूँ।
२. जीव अपने कर्मों के द्वारा इहलोक और परलोक में सदा दुःख पाता है उसका निदर्शन यह मृगापुत्र चरित्र है।
(१) आर्याछंद