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पाइयपच्चूसो
रानी मृगादेवी जब गणधर गौतम से बात कर रही थी तब ही मृगापुत्र के भोजन का समय हो गया। रानी मृगादेवी ने गणधर गौतम से कहा- आप यहीं ठहरें, मैं अभी मृगापुत्र को दिखाती हूँ । ऐसा कहकर, भीतर जाकर उसने वस्त्र बदले
और रसोईघर में जाकर मृगापुत्र के लिए भोजन लिया। फिर उसे एक गाडी में रखकर गणधर गौतम के पास आई और बोली- आप मृगापुत्र को देखने मेरे साथ आये । गणधर गौतम रानी के साथ भूमिगृह में आये। रानी ने उस बालक को भोजन दिया । वह आसक्तचित्त से उसे खाने लगा। वह खाया हुआ भोजन रक्त
और पीप में परिणत हो गया। उसके बाद उसने रक्त, पीप का वमन किया और पुन: उस रक्त, पीप को खाने लगा। उसे देखकर गणधर गौतम के मन में प्रश्न उठा— इस बालक ने पूर्व भव में ऐसे कौन से कर्म किये हैं जिसका फल भोग रहा है ? वे वहां से पुन: भगवान् महावीर के पास आये। भगवान् को वंदन कर उन्होंने अपने मानसिक विचार रखे। तब भगवान् ने मृगापुत्र के पूर्वभव का वर्णन करते हुए एकादि राष्ट्रकूट का जीवन प्रस्तुत किया। उसे सुनकर गणधर गौतम ने उसके
आगामी भवों के विषय में पूछा । तब भगवान् ने कहा- यह अनेकानेक भव करता हुआ अंत में सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होगा।