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मियापुत्तचरियं
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एक बार श्रमण भगवान् महावीर का शिष्यों सहित मृगाग्राम में आगमन हुआ। जनता भगवान् के दर्शनार्थ जाने लगी। उनकी आवाज सुनकर एक अंधे व्यक्ति ने पूछा- ये लोग कहाँ जा रहे हैं? क्या कोई उत्सव है ? तब एक व्यक्ति ने कहा- नगर में कोई महोत्सव नहीं है । श्रमण भगवान् महावीर का आगमन हुआ है । अत: ये लोग उनके दर्शनार्थ जा रहे हैं । तब वह भी भगवान् के दर्शनों का उत्सुक होकर, हाथ में यष्टि लेकर भगवान् के समवशरण में आ गया। भगवान् ने उपस्थित जनसमूह को धर्मोपदेश सुनाया। प्रवचन सुनकर मनुष्य अपने घर चले गये । उस अंधे व्यक्ति को देखकर गणधर गौतम ने भगवान् से पूछा- क्या संसार में अभी ऐसा कोई व्यक्ति है जो जन्मांध तथा जन्मांधरूप है । भगवान् ने कहाहां । गणधर गौतम ने साश्चर्य पूछा- वह कहां है ? भगवान् ने कहा— वह इस मृगाग्राम के राजा विजय का पुत्र है । रानी मृगादेवी उसका गुप्तरूप से पालन-पोषण कर रही है। भगवान् का कथन सुनकर गणधर गौतम के मन में उसे देखने की इच्छा हुई। भगवान् की अनुमति लेकर वे राजा विजय के महलों में आये । रानी मृगादेवी ने उन्हें आते हुए देखा। वह उनके सम्मुख गई। उन्हें भक्तिपूर्वक वंदन कर भिक्षा ग्रहण करने की प्रार्थना की । तब गणधर गौतम ने कहा- 'मैं भिक्षा लेने नहीं आया हूँ, मैं तो तुम्हारे पुत्र को देखने आया हूँ । यह सुनकर मृगादेवी ने मृगापुत्र के बाद उत्पन्न तीन पुत्रों को गणधर गौतम के सम्मुख उपस्थित कर दिया। तब गणधर गौतम ने कहा- मैं इन्हें देखने नहीं आया हूँ। मैं तो तुम्हारे ज्येष्ठ पुत्र को, जो जन्मांध और जन्मांधरूप है, उसे देखने आया हूँ तथा जिसका तुम गुप्तरूप से पालन कर रही हो । यह सुनकर मृगादेवी को आश्चर्य हुआ। उसने पूछा- ऐसा कौन ज्ञानी व्यक्ति है जिसने मेरी गुप्त बात को भी जान लिया। तब गणधर गौतम ने भगवान् महावीर का नाम बताते हुए कहा- परिषद् में एक अंधे व्यक्ति को देखकर मैंने पूछा कि क्या इस संसार में ऐसा कोई व्यक्ति है जो जन्मांध और जन्मांधरूप है। भगवान् ने तुम्हारे ज्येष्ठ पुत्र के विषय में बताया कि वह जन्मांध और जन्मांधररूप है तथा तुम उसका गुप्तरूप से पालन कर रही हो।