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हों। अतः महाकवि ब्र. भूरामल शास्त्री (अपर नाम चा.च. आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज) द्वारा विरचित लघुत्रयी (सुदर्शनोदय, दयोदय, भद्रोदय) पर ब्यावर (राज.) में आयोजित अखिल भारतीय जैनाजैन विद्वानों की संगोष्ठी में विद्वानों के अभिमत पर मुनिश्री के भावों की क्रियान्विति हेतु "आचार्य ज्ञानसागर वागर्थ विमर्श केन्द्र" की स्थापना की गयी।
प्रकाशित साहित्य पाठकों को सरलता एवं सहजता से उपलब्ध हो सके ऐसी भावना के साथ मुनिश्री की ही प्रेरणा एवं आशीर्वाद से भगवान ऋषभदेव ग्रन्थमाला सांगानेर की स्थापना की गई। ___ भगवान ऋषभदेव ग्रंथमाला के संयुक्त सहकार से केन्द्र द्वारा सौ से अधिक ग्रंथों का प्रकाशन किया जा चुका है तथा आचार्य ज्ञानसागर वाङ्मय पर 25 से अधिक महानिबन्धों का लेखन कार्य विविध विद्वानों द्वारा तथा ऊन विद्या पर अर्द्धशतकाधिक शोधार्थी विद्वानों द्वारा विश्वविद्यालयीय शोधोपाधि पीएच.डी. हेतु शोध प्रबन्धों का लेखन सम्पादित हुआ है तथा सम्प्रति एक दर्जन से अधिक शोधछात्र जैन विद्या के विविध पक्षों पर केन्द्र के सहयोग से अपने शोध-अनुसंधान कार्य में संलग्न हैं। ___ "लघुतम समय में ऐसे अनेक प्रतिमान-संस्थापक कार्य किस प्रकार संभव हो सके?" यह जिज्ञासा प्रायः अनेक व्यक्तियों द्वारा की जाती है और जब उत्तर मिलता हैं कि यह सब मान् पुरातत्त्व संरक्षक, असंभव सदृश महान् सांस्कृतिक उपक्रमों के संप्रेरक, विद्वत् कल्पतरु, ज्ञान रथ के सारथी उपसर्गजयी, महत्तपस्वी, आध्यात्मिक सन्त मुनिपुंगव सुधासागरजी के आशीष का कमाल है।" तो जिज्ञासु-जनों के मौन मुखर हो उठता है-“मुनिपुंगव सुधासागर का तपोबल निश्चय ही अनुपम और अचिन्त्य है;" अगर मुनिवर न होते तो कौन सैकड़ों तीर्थक्षेत्रों के पुरातत्त्व का