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________________ (iii) वास्तुशास्त्रानुसार संरक्षण कराता? विद्वानों को जैन विद्याओं के उद्धार की दिशा में कौन प्रवृत्त करता? युग प्रवाह के कारण चलती मिथ्यात्व की आँधी को कौन रोकता? अस्तु। श्रीमती कामिनी जैन साहित्यिक प्रतिभा की धनी स्थापित विदुषी लेखिका है। पूज्य मुनिवरश्री की प्रवचन गंगा में स्नात होकर आर्षमार्ग की परम्परा से सम्बद्ध हुयी हैं, पूज्य मुनिश्री के आशीष से उन्होंने वीरोदय महाकाव्य एवम् विश्ववन्द्य भगवान् महावीर स्वामी के लोकोत्तर चरित का तुलनात्मक अध्ययन प्रकृत ग्रन्थ में प्रस्तुत किया है। शोध प्रबन्ध विश्वविद्यालीय उच्चतम मानदण्डों के अनुरूप सज्जित हो एतदर्थ जैनविद्याओं के शोधानुसंधान एवम् उत्कर्ष में सतत निरत मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के विविध उच्च पदों को अलंकृत कर चुके सुसिद्ध मनीषी प्रो. डॉ. सुमन के प्रति केन्द्र कृतज्ञता ज्ञापित करता है एवम् विदुषी लेखिका इस विद्वतापूर्ण परिश्रमान्वित सारस्वत कार्य के लिये उनहें साधुवाद अर्पित करते हुए आशा करता है, उनकी प्रतिभा से सरस्वती का भण्डार और वृद्धिगत होगा। __ प्रकृत ग्रन्थ का विद्वतापूर्ण सम्पादन सरलता, सज्जनता व सात्विकता की प्रतिमूर्ति पं. श्री अभयकुमार जैन, जैनदर्शनसाहित्याचार्या की न्यायपूर्ण लेखनी से किया गया है। पं. श्री अभयकुमार जी जो भी कार्य करते हैं पूरी ईमानदारी से श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक करते हैं। पं. जी के प्रति केन्द्र आभार व्यक्त करता है। श्री प्रदीपजी लुहाड़िया, जयपुर ने मुद्रण कार्य की व्यवस्था में जो सहयोग दिया है, वह उनकी गुरुभक्ति एवम् श्रुतभक्ति का निदर्शक है, वे साधुवाद के पात्र हैं। हमारा विश्वास है भारत के श्रमण संस्कृति के अनुरागी जैना-जैन विद्वानों के सारस्वत सहयोग से श्रमण साहित्य का
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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