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आचार्य श्री ज्ञानसागर और उनके महाकाव्यों की समीक्षा
कुशलता का भी अच्छा वर्णन है । इनके भोग-विलास और सुखी जीवन का भी उल्लेख है । (द्वाविंशति सर्ग)
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राज्य- कार्य छोटे भाई विजय को देकर जयकुमार अपना ध्यान प्रजा के हित - चिन्तन में लगाया। एक दिन जयकुमार सुलोचना के साथ महल की छत पर बैठे थे । आकाश में एक विमान को देखकर प्रभावती नाम की पूर्वजन्म की प्रिया का स्मरण करके वे मूर्छित हो गये। सुलोचना ने भी सामने एक कपोत - - युगल को देखा, तो वह भी अपने पूर्व जन्म के प्रेमी रतिवर का स्मरण करके मूर्छित हो गई । उपचार से दोनों की मूर्छा समाप्त हुई, किन्तु वहाँ उपस्थित स्त्रियों ने सुलोचना के चरित पर सन्देह किया । जयकुमार के पूछने पर सुलोचना ने अपने पूर्वजन्मों का वृत्तान्त सुनाया । सुलोचना के पूर्व - जन्म
विदेह देश में पुण्डरीकिणी नगरी में कुबेरप्रिय सेठ अपनी स्त्री के साथ रहता था। उसके वहाँ रतिवर नामक कबूतर और रतिषेणा नाम की कबूतरी भी रहती थी । एक दिन सेठ के यहाँ दो मुनिवर आये। उनके दर्शनों से कपोत-युगल को अपने पूर्व जन्मों की याद आ गई। फलस्वरूप उन्होंने ब्रह्मचर्य - - व्रत ले लिया । व्रत के फलस्वरूप दोनों अगले जन्म में भी हिरण्यवर्मा और प्रभावती के रूप में पति-पत्नी बने। इस पर्याय में भी इन्हें पूर्वभव के स्मरण से वैराग्य हुआ और वे दीक्षित होकर मुनि तथा आर्यिका बने । एक दिन तपश्चरण करते समय उनके पूर्व जन्म के वैरी विद्युच्चोर ने क्रोध में आकर इन्हें जला दिया । तप के प्रभाव से वे दोनों अगले जन्म में देव हुए। एक दिन घूमते हुये वे दोनों देव एक सरोवर के समीप पहुँचे । वहाँ तपस्यारत भीम नामक मुनिराज से उन्हें ज्ञात हुआ कि जब वह देव के (हिरण्यवर्मा) सुकान्त के रूप में जन्मा था, तब वे भवदेव नाम शत्रु थे । कपोत के जन्म के समय वे बिलाव के रूप में उनके शत्रु बने थे और हिरण्यवर्मा के जन्म के समय में विद्युच्चोर भी वे ही थे। इस समय वे भीम के रूप में उत्पन्न हुये हैं। सुलोचना ने स्पष्ट कर दिया कि जयकुमार ही सुकान्त, रतिवर, कबूतर, हिरण्यवर्मा और स्वर्ग के देव के रूप में उत्पन्न हुए थे। सुलोचना से अपने पूर्वजन्मों को सुनकर जयकुमार बहुत प्रसन्न हुए ।