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________________ 52 वीरोदय महाकाव्य और म. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन महामंत्र की आराधना की तो गंगादेवी ने आकर इस उपसर्ग को दूर किया और सुलोचना की दिव्य वस्त्राभूषणों से पूजा की। जयकुमार द्वारा पूँछे जाने पर गंगादेवी ने अपना परिचय दिया और पूर्वभव में सुलोचना द्वारा किये गये उपकार की घटना सुनायी। जयकुमार घटना सुनकर प्रसन्न हुए। उन्होंने गंगादेवी द्वारा उपसर्ग दूर कर दिये जाने का आभार माना और उसे विदा किया। (विंशति सर्ग) जयकुमार की आज्ञा लेकर सैनिक हस्तिनापुर को प्रस्थित हुये। जयकुमार ने भी रथ पर आरूढ़ होकर सुलोचना के साथ प्रस्थान किया। मार्ग-स्थित दृश्यों के वर्णन से सुलोचना का मनोरंजन करते हुये वे एक वन में पहुँचे। भीलों के मुखिया जयकुमार के लिये भेंट में गजमुक्ता, फल पुष्पादि लाए। भीलों की पुत्री के सौन्दर्य को देखकर जयकुमार प्रसन्न हुये। सुलोचना भी गोपों की वस्ती देखकर प्रसन्न हुईं। गोप-गोपियों ने दही, दूध और आदर से जयकुमार एवं सुलोचना को प्रसन्न किया। जयकुमार ने कुशल वार्ता पूँछने के पश्चात् प्रेमपूर्वक उन सभी से विदा ली। हस्तिनापुर पहुंचने पर जयकुमार और सुलोचना का मन्त्रियों ने स्वागत किया। प्रजा वर्ग ने भी अपने राजा का सम्मान किया। नगर की स्त्रियों ने नव-वधू सुलोचना का सौन्दर्य देखकर हर्ष का अनुभव किया। जयकुमार ने सुलोचना के मस्तक पर पट्ट बांधकर उसे 'प्रधानमहिषी घोषित किया। राजकुमार के इस व्यवहार की हेमाङ्गद आदि ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की। जयकुमार ने हास-परिहास सहित उनके साथ बहुत समय व्यतीत किया। रत्न, आभूषण इत्यादि देकर उन्हें विदा किया। जयकुमार को प्रणाम करके वे सब हस्तिनापुर से काशी पहुंचे। वहाँ पिता को प्रणाम कर उन्हें अपनी बहिन-बहनोई का सारा वृत्तान्त सुनाया। पुत्री के सुख-समृद्धि से परिपूर्ण वृत्तान्त को जानकर काशी-नरेश अकम्पन प्रसन्न हुए और आत्म-कल्याण के मार्ग की ओर अग्रसर हुए। (एकविंशति सर्ग) __92 श्लोकों में निबद्ध 22वें सर्ग में जयकुमार और सुलोचना के दाम्पत्य-प्रेम का वर्णन है। यहाँ का चमत्कार पूर्ण ऋतुवर्णन भी उल्लेखनीय है। इसमें जयकुमार के प्रजापालन तथा सुलोचना के गृह-कार्य की
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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