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________________ 51. आचार्यश्री ज्ञानसागर और उनके महाकाव्यों की समीक्षा जयकुमार सुलोचना एवं उनके अन्य साथियों ने वहाँ पर बहुत समय तक वनक्रीडा एवं मधुर आलाप से अपना मनोरंजन किया। (चतुर्दश सर्ग) सूर्य के अस्त होने पर क्रमशः सन्ध्या का आगमन हुआ। रात्रि का अन्धकार चारों ओर फैला और चन्द्रमा का उदय हुआ। यहाँ स्त्रियों के हाव-भाव का सरस वर्णन है। (पंचदश सर्ग) रात्रि के में स्त्री-पुरूदों ने परस्पर हास-विलास करते हुये मद्य-पान किया। मद्यपान से उनकी चेष्टायें विकत हो गईं, नेत्र लाल हो गये। स्त्री-पुरूष में परस्पर मान, अभिमान और प्रेम का व्यवहार होने लगा। यहाँ सखियों की आलंकारिक प्रणय-कथा का सरस वर्णन है। (षोडश सर्ग) सभी युगल एकान्त स्थानों मे चले गये। जयकुमार सुलोचना एवं अन्य सभी पुरूषों ने सुरत क्रीड़ायें की। अर्द्धरात्रि में सभी ने निद्रा-देवी की गोद में विश्राम किया। इसमें श्रृंगार वर्णन है। (सप्तदश सर्ग) शुभ प्रभात हुआ। नक्षत्र विलीन हो गये। चन्द्रमा अस्त हो गया। भुवन-भास्कर का उदय हुआ। लोग निद्रा-रहित होकर अपने-अपने काम में लग गये। यहाँ प्रभातवर्णन में ' कवि की काव्य-प्रतिभा का परिचय मिलता है। (अष्टादश सर्ग) प्रातःकाल जयकुमार ने स्नानादि क्रियायें की। जिनेन्द्रदेव की पूजा कर श्रद्धापूर्वक स्तुति की। यहाँ ऋद्धिमंत्रों का उल्लेख है। (एकोनविंश सर्ग) . इसके बाद जयकुमार ने सम्राट भरत से भेंट करने की इच्छा से अयोध्या की ओर प्रस्थान किया। वहाँ पहुँचकर सभा भवन के सिंहासन पर बैठे सम्राट को उसने, प्रणाम किया। भरत के वात्सल्यपूर्ण वचनों से आश्वस्त होकर जयकुमार ने क्षमा याचना पूर्वक सुलोचना-स्वयंवर का सारा वृत्तान्त कहा। उसे सुनकर सम्राट ने अपने पुत्र अर्ककीर्ति को ही दोषी ठहराया। उन्होंने अक्षमाला और अर्ककीर्ति के विवाह पर काशी-नरेश अकम्पन के प्रति प्रशंसात्मक वचन भी कहे। सम्राट से सत्कृत होकर . जयकुमार, हाथी पर सवार होकर अपनी सेना की ओर चल पड़ा। मार्ग में गंगानदी में प्रवेश करते ही जयकुमार के. हाथी पर. व्यन्तर द्वारा उपसर्ग हुआ। जल की ऊँची-ऊँची तरंगे उठने लगीं। गंगा में एकाएक उठे तूफान से जयकुमार कुछ व्याकुल हुये। पति को संकट में देख सुलोचना ने
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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