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________________ श्रवणधर्म में तीर्थकर परम्परा और भ. महावीर तथा महावीर चरित-साहित्य..... 31 मंत्र बोलकर पवित्र किये जाने का भी वर्णन किया है। भगवान के श्री वर्धमान, सन्मति, महावीर आदि नामों के रखे जाने का वर्णन पूर्व परम्परा के ही अनुसार है। महावीर जब कुमारकाल को पार कर युवावस्था से सम्पन्न हो जाते हैं, तब उनके पिता विचार करते हैं कि - अज्जवि विज्ञय आलि ण पयासइ, अज्ज सकामालाव ण भासइ। अज्जजि तिय तूणे ण उ मिज्जइ, अज्ज अणंय कणिहिण दलिजइ णांरि-कहा-रसि मणु णउ ढ़ोवइ, णउ सवियारउ कहव पलोवइ ।। - महावीरचरित पत्र 41ए। महावीर को वैराग्य होने के अवसर पर रईधू ने बारह भावनाओं का सुन्दर वर्णन किया है। गौतम के दीक्षित होते ही भगवान की दिव्य : वनि प्रकट हुई। इस प्रसंग पर षट्-द्रव्य और सप्त तत्त्वों का तथा श्रावक और मुनिधर्म का विस्तृत वर्णन किया है। अन्त में भगवान के निर्वाण कल्याणक का वर्णन करके गौतम के पूर्व-भव एवं भद्रबाहु स्वामी का चरित भी लिखा है। सिरहरू-रचित वडदमाणचरिउ . वड्ढमाणचरिउ' के रचयिता कवि श्रीधर हैं। अपभ्रंश भाषा में रचित इसकी कथावस्तु का मूल स्रोत दिगम्बर परम्परा रही है, तथापि श्वेताम्बर महावीर-चरितों का भी इस पर प्रभाव पड़ा है। जैसे त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में सिंह को मारने की घटना। बालक महावीर के जन्म होने के दिन से ही सिद्धार्थ के घर लक्ष्मी दिन-दिन बढ़ने लगी, जिससे उसका नाम वर्धमान रखा गया आदि । ___ कवि ने वडढ्माणचरिउ में 10 सन्धियों में वर्धमान के चरित का सांगोपांग वर्णन किया है । वडढमाणचरिउ की मूल कथा वस्तुतः 9वीं सन्धि से प्रारम्भ होती है तथा 10वीं सन्धि में उन्हें निर्वाण प्राप्त हो जाता है। बाकी की आठ सन्धियों में नायक के भवान्तरों का वर्णन किया गया है।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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