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________________ 26 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन 28. ज्ञानविमलसूरिः श्रीपालचरित श्रीपालचरित की रचना संस्कृत गद्य में वि. सं. 1745 (1688ई.) में की थी। 29. रूपचन्द्रगणिः गौतमचरित गौतमचरित ग्यारह सर्गात्मक काव्य है। इसमें जैनसंघ का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया गया है। 30. रूपविजयगणिः पृथ्वीचन्द्रचरित रूपविजयगणि तपागच्छीय संविग्न शाखा के पद्मविजयगणि के शिष्य थे। इन्होंने पृथिवी-चन्द्र-चरित की रचना वि. सं. 1882 (1825ई.) में की थी। 31. भूरामल शास्त्री (आचार्य ज्ञानसागर) समुद्रदत्त चरित महावीरचरित (वीरोदयकाव्य) श्री भूरामल जी शास्त्री ही मुनिदीक्षा के बाद आचार्य ज्ञानसागर महाराज कहलाये। आपका जन्म राजस्थान में जयपुर के समीपवर्ती राणौली ग्राम में सेठ चतुर्भज जी के घर वि. सं. 1948 (1891ई.) में हुआ था। आपने वि. सं. 2004 में ब्रह्मचर्य प्रतिमा, 2012 में क्षुल्लक दीक्षा और सं. 2014 में आचार्य शिवसागर जी महाराज से खानियां (जयपुर) में मुनिदीक्षा धारण की थी। इनके द्वारा लिखी गई समुद्रदत्तचरित, वीरोदय (महावीर-चरित) सुर्दशनोदय, दयोदय आदि अनेक रचनायें उपलब्ध हैं। समुद्रदत्तचरित 9 सर्गात्मक काव्य है। इसमें कुल 345 पद्य हैं। अन्त में 4 प्रशस्ति पद्य हैं, जिनमें उनके ग्रन्थों का उल्लेख है। महावीरचरित (वीरोदय) 22 सर्गात्मक महाकाव्य है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में मंगलाचारण के रूप में श्री वीर प्रभु की स्तुति की गई है। 22वें सर्ग में महावीर के बाद जैनसंघ में भेद का उल्लेख करते हुए कवि ने जैनधर्म के उत्तरोत्तर हास पर चिन्ता व्यक्त की है। इस प्रकार सातवीं शताब्दी से लेकर बीसवीं शताब्दी तक के चरित-नामान्त काव्यों को यहाँ प्रस्तुत किया गया है। वीरोदय महाकाव्य में वर्णित विषय वस्तु सर्गबद्धता, रस, छन्द, अलंकार आदि का सुव्यवस्थित वर्णन काव्य-शास्त्रियों की दृष्टि से
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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