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________________ प्रवणधर्म में तीर्थकर परम्परा और म. महावीर तथा महावीर चरित-साहित्य..... 25 अधिकार में कुण्डनपुर-वर्णन, त्रिशला देवी के स्वप्नों का वर्णन, देवियों द्वारा प्रियकारिणी माता की सेवा करना, सौधर्मेन्द्र द्वारा 1008 कलशों से बालक का अभिषेक करना, जन्म के दश अतिशयों के साथ भगवान की संसार से विरक्ति का भी चित्रण कवि ने बड़ी रोचकता से किया है। वैराग्य को बढ़ाने वाली अनित्य, अशरण आदि बारह भावनाओं के चिन्तन के अतिरिक्त कठोर तपश्चरण का वर्णन कर सकलकीर्ति ने समवशरण का भी विस्तृत विवेचन किया है। रत्नत्रय धर्म का उपदेश, श्रावक-मुनि-धर्म के विवेचन द्वारा जहाँ कवि ने दार्शनिक एवं धार्मिक विषयों का समावेश किया है वहीं भगवान को केवलज्ञान होने का तथा इन्द्रादिकों द्वारा निर्वाण कल्याणक मनाये जाने का भी उल्लेख किया है। 23. विद्यानन्दिः सुदर्शनचरित __ डॉ. गुलाबचंद चौधरी ने इनका कार्यकाल वि. सं. 1489.1538 (1432-1489ई.) माना है। सुदर्शनचरित की रचना गंधारपुरी में वि. सं. 1513 में हुई थी। 24. ज्ञानसागर: विमलचरित विमलनाथचरित 5 सर्गात्मक गद्य काव्य हैं। इसमें तीर्थकर विमलनाथ का वर्णन है। 25. रत्नकीर्तिः भद्रबाहुचरित संस्कृत साहित्य में रत्नकीर्ति नाम के अनेक आचार्य हुए हैं। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने इनका समय वि. की 16वीं शती का उत्तरार्ध माना है। 26. कवि राजमल्लः जम्बूस्वामीचरित जम्बूस्वामीचरित त्रयोदश सर्गात्मक काव्य है। अनुष्टुप् छन्द में रचित होने पर भी काव्य रमणीय है। 27. रत्नचन्द्रमणिः प्रद्युम्नचरित प्रद्युम्नचरित सोलह सर्गात्मक महाकाव्य है। इसमें श्रीकृष्ण, सत्यभामा, रूक्मणि आदि का भी चरित्र-चित्रण हुआ है।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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