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श्रवणधर्म में तीर्थकर परम्परा और म. महावीर तथा महावीर चरित-साहित्य...... 23 सात सर्गात्मक काव्य है। धन्यकुमार भ. महावीर के समकालीन राजगृह के श्रेष्ठिपुत्र थे।" 12. मुनिरत्नसूरिः अममस्वामिचरित
मुनिरत्नसुरिः ने अममस्वामिचरित की रचना वि. सं. 1252 में की थी। अतः इनका समय बारहवीं शताब्दी का अन्त मानना चाहिये। अममस्वामिचरित 20 सर्गात्मक महाकाव्य है। इसमें भावी तीर्थकर अमम का चरित निबद्ध है। 13. देवप्रभसूरिः पाण्डवचरित, मृगावतीचरित
देवप्रभसरि मलधारी गच्छ के थे। इनका रचनाकाल 12वीं और 13वीं शताब्दी का सन्धिकाल माना जाता है। पाण्डवचरित 18 सर्गात्मक महाकाव्य है। मृगावतीचरित में वत्सराज उदयन की माता मृगावती का चरित्र वर्णित हुआ है। तेरहवीं शताब्दी में अनेक प्रभावी कवियों ने अनेक पुण्य-पुरूषों का चरित काव्यों में गुम्फित किया है। 14. जिनपाल उपाध्यायः सनतकुमारचरित
जिनपाल उपाध्याय चन्द्रकुल की प्रवरव्रज शाखा के जिनपतिसूरि के शिष्य थे। इन्होंने 1205 ई. में षट्स्थानवृत्ति की रचना की थी। अतएव इनका रचनाकाल तेरहवीं शताब्दी का प्रारम्भ मानना चाहिये। सनतकुमारचरित में चतुर्थ चक्रवर्ती सनतकुमार का चरित 24 सर्गों में निबद्ध है। 15. माणिक्यचन्द्रसूरिः पार्श्वनाथचरित __माणिक्यचन्द्रसूरि राजगच्छीय नेमिचन्द्र के प्रशिष्य और सागरचन्द्र के शिष्य थे। इन्होंने पार्श्वचरित की रचना वि. सं. 1276 (1229 ई.) में की थी। यह दश सर्गात्मक महाकाव्य है। 16. उदयनप्रभसूरिः संघपतिचरित
महामात्य वस्तुपाल ने गिरनार की यात्रा के लिये एक संघ निकाला था। वस्तुपाल उसके संरक्षक या संघपति थे। इसी को आधार मानकर कवि ने इसका नाम संघपति-चरित रखा है।