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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन
करके अघाति-कर्मों का क्षय करके मुक्ति को प्राप्त हुये । इस प्रकार असग कवि ने वर्धमान चरित्र में भ. महावीर के चरित्र का विस्तृत विवेचन किया है।
7.
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वादिराज : पार्श्वनाथचरित, यशोधरचरित
वादिराज ने पार्रवनाथचरित की रचना शक सं. 947 (1025) ई. में की थी। यह द्वादश सर्गात्मक महाकाव्य है । यशोधरचरित में राजा यशोधर की कथा वर्णित है ।
8.
मल्लिषेणः नागकुमारचरित
मल्लिषेण जिनसेन के शिष्य और कनकसेन के प्रशिष्य थे । मल्लिषेण ने अपने महापुराण की समाप्ति शक सं. 969 (1047) ई. में की थी। नागकुमारचरित पांच सर्गात्मक काव्य है। इसमें श्रुतपंचमी का माहात्म्य प्रकट करने के लिये नागकुमार का चरित निबद्ध किया गया है ।
9.
हेमचन्द्र : त्रिषष्टिश्लाका पुरूषचरित, कुमारपालचरित त्रिषष्टिश्लाकापुरूषचरित में जैनधर्म-मान्य त्रेसठ श्लाका पुरूषों का चरित वर्णित है। यह 10 पर्वों में विभक्त है । अन्तिम पर्व सबसे विशाल है, जिसमें तीर्थंकर महावीर का जीवन-चरित्र वर्णित है । वास्तव में इसे काव्य न कहकर पुराण कहा जाना चाहिये । अनेक चरित्र - काव्यों का उपजीव्य होने से उसे चरितकाव्यों में स्थान दिया गया हैं ।
कुमारपालचरित एक ऐतिहासिक महाकाव्य है। इसमें कुल 18 सर्ग हैं, जिनमें 10 संस्कृत भाषा में तथा 8 प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं। नेमिचन्द्रः धर्मनाथचरित
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धर्मनाथचरित के रचयिता नेमिचन्द्र हैं, जिन्होंने वि. सं. 1213 में प्राकृत में अनन्तनाहचरियं की रचना की थी ।
11. गुणभद्रमुनिः धन्यकुमारचरित
हैं ।
गुणभद्रमुनि चन्देल - नरेश परमादि के शासनकाल में हुए इनका समय ईसा की बारहवीं शताब्दी माना जाता हैं । धन्यकुमारचरित