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श्रवणधर्म में तीर्थकर परम्परा और भ. महावीर तथा महावीर चरित - साहित्य......
रहने का बड़ा ही मार्मिक एवं विस्तृत वर्णन है। चौदहवें अध्याय में भगवान के ज्ञानकल्याणक का ठीक वैसा ही वर्णन किया गया है, जैसा कि पुराणों में प्रत्येक तीर्थंकर का पाया जाता है । किन्तु सकलकीर्ति ने कुछ नवीन बातों का भी यहाँ उल्लेख किया है।
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भगवान के कल्याणक को मनाने जाते समय इन्द्र के आदेश से बलाहक देव ने जम्बूद्वीप - प्रमाण एक लाख योजन विस्तार वाला विमान बनाया ऐसे विमान का विस्तृत वर्णन प्राकृत जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति और संस्कृत त्रिषष्ठिश्लाकापुरूषचरित में मिलता है । इस पर बैठकर इन्द्र भगवान के जन्म कल्याणकादि करने आता है
यथा
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आदिशत्पालकं नाम वासवोऽप्याभियोगिकम् । असम्भाव्य प्रतिमानं विमानं क्रियतामिति । 1353 || त्रिषष्टि. श्ला.पु. च. सर्ग - 21
पन्द्रहवें अध्याय में सभी देव - देवियाँ, मनुष्य और तिर्यञ्च समवशरण के मध्यवर्ती 12 कोठों में यथास्थान बैठे। इन्द्र ने भी भगवान की पूजा-अर्चना कर स्तुति की और अपने स्थान पर जा बैठा। सभी लोग भगवान का उपदेश सुनने को उत्सुक बैठे थे। फिर भी दिव्य ध्वनि प्रकट नहीं हुयी । धीरे-धीरे तीन पहर बीत गये तब इन्द्र चिन्तित हुआ । अविधज्ञान से उसने जाना कि गणधर के अभाव में भगवान की दिव्य-ध्वनि नहीं हो रही है। तब वह वृद्ध विप्र का रूप बनाकर गौतम के पास गया और वही प्रसिद्ध “त्रैकाल्यं–द्रव्यषटकं” वाला श्लोक कहकर अर्थ पूँछा । सत्रहवें अध्याय में गौतम द्वारा पूँछे गये पुण्य-पाप, विपाक संबंधी अनेकों प्रश्नों का उत्तर दिया गया है जो कि मनन करने योग्य है । अठारहवें अध्याय में भगवान के द्वारा उपदिष्ट गृहस्थधर्म, मुनिधर्म, लोक - विभाग, काल-विभाग, आदि का वर्णन है । उन्नीसवें अध्याय में सौधर्मेन्द्र ने भगवान की अर्थ- गम्भीर और विस्तृत स्तुति करके भव्य लोगों के उद्धारार्थ विहार करने का प्रस्ताव : किया और भव्यों के पुण्य से प्रेरित भगवान का सर्व आर्य- देशों में विहार हुआ। अंत में भगवान पावानगरी के उद्यान में पहुँचे और योग निरोध