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20 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन भव में दर्शन-विशुद्धि आदि षोडशकारण भावनाओं का चिन्तवन करके तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध करता है। सातवें अध्याय में भ. महावीर के गर्भावतार का वर्णन है। आठवें अध्याय में दिक्कुमारिका देवियों द्वारा भगवान की माता की विविध प्रकारों से की गई सेवा-सुश्रुषा का और उनके द्वारा पूछे गये अनेकों शास्त्रीय प्रश्नों के उत्तरों का बहुत ही सुन्दर और विस्तृत वर्णन है।
नवें अध्याय में भगवान के अभिषेक का वर्णन है। भगवान के अभिषेक के समय इन्द्र के आदेश से सर्व दिग्पाल अपनी-अपनी दिशा में बैठते हैं। तब क्षीरसागर के जल से भरे हुए 1008 कलशों से इन्द्र अपनी विक्रिया-निर्मित 1008 भुजाओं से भगवान के सिर पर जलधारा छोड़ता है। यहाँ पर सकलकीर्ति ने गन्ध, चन्दन एवं अन्य सुगन्धित द्रव्यों से युक्त जल-भरे कलशों से भगवान का अभिषेक कराया है। यथा
पुनः श्रीतीर्थकर्तारमभ्य–सिञ्चच्छताध्वरः । गन्धाम्बुचन्दनाद्यैश्च विभूत्याऽमा महोत्सवैः।। 29 ।। सुगन्धित-दृव्य-सन्मिश्रसुगन्ध-जल-पूरितैः। गन्धोदक-महाकुम्भैर्मणि-काञ्चन-निर्मितैः।। 30 ।।
दशवें अध्याय में भगवान की बाल-क्रीड़ा का सुन्दर वर्णन है। जब महावीर कुमारावस्था को प्राप्त हुये, तो उनके जन्म-जात मति, श्रुत और अवधिज्ञान सहज में ही उत्कर्ष को प्राप्त हो गये। ग्यारहवें अध्याय में बारह भावनाओं का विशद वर्णन है। इनके चिन्तवन से महावीर का वैराग्य और भी दृढ़तर हो गया था। बारहवें अध्याय में महावीर के संसार, देह और भोगों से विरक्त होने की बात को जानते ही लौकान्तिक देव आये और स्तवन-नमस्कार करके भगवान के वैराग्य का समर्थन कर अपने स्थान को चले गये। तभी घण्टा आदि के बजने से भगवान को विरक्त जानकर सभी सुर और असुर अपने-अपने वाहनों पर चढ़कर कुण्डनपुर आये और भगवान के दीक्षा-कल्याणक महोत्सव करने के लिये आवश्यक तैयारी करने लगे। तेरहवें अध्याय में भगवान की तपस्या का, उनकी प्रथम पारणा का, ग्रामानुग्राम विहार का और सदाकाल जागरूक