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श्रवणधर्म में तीर्थकर परम्परा और भ. महावीर तथा महावीर चरित-साहित्य.... 17
आचार्य रविषेण (7वीं शताब्दी) का पद्मचरित संस्कृत भाषा में निबद्ध आद्य जैनचरित-काव्य है। जैनकवि ईसा की सप्तम शताब्दी से निरन्तर चरित-काव्यों की रचना करने में संलग्न रहे हैं। कुछ चरितकाव्यों का संक्षिप्त विवेचन यहाँ प्रस्तुत है - 1. रविषेण : पद्मचरित
रविषेण ने पद्मचरित की रचना वीरनिर्वाण के साढ़े 1203 वर्ष बाद (ई. सन् 677) में पूर्ण की थी। इस बात का उल्लेख ग्रन्थ में ही किया गया है। "द्विशताभ्याधिके समासहस्रे समतीतेऽर्द्ध-चतुर्थवर्ष-युक्ते। जिनभास्कर-वर्धमान-सिद्धेश्चरितं पद्ममुनेरिदं निबद्धम् ।।"
बाह्य प्रमाणों के आधार पर भी इनका यही समय सिद्ध होता है; क्योंकि उद्योतनसूरि और आचार्य जिनसेन ने इसका उल्लेख किया है। इन दोनों का ही समय आठवीं शताब्दी है। 2. जटासिंहनन्दिः वरांगचरित
__ जैन चरित-काव्यों में संस्कृत के आद्य रचयिता का गौरव जटासिंहनादि (जटाचार्य) को ही प्राप्त है। यद्यपि इससे पूर्व पद्मचरित की रचना हो चुकी थी, पर उसमें पौराणिक तत्त्व अधिक थे।' 3. गुणभद्रः जिनदत्तचरित
गुणभद्र आचार्य जिनसेन के शिष्य थे। दशरथ भी गुणभद्र के गुरू थे। डॉ. गुलाबचन्द चौधरी ने जिनदत्त-चरित को आचार्य जिनसेन के शिष्य गुणभद्र की रचना न मानकर किसी पश्चात्वर्ती भट्टारक गुणभद्र की रचना माना है। दशम शताब्दी के एक शिलालेख में गुणभद्र का उल्लेख किया गया है। अतः इनका काल ई. सन् को 9वीं शताब्दी का अन्त मानना चाहिये। 4. वीरनन्दिः चन्द्रप्रभचरित
वीरनन्दि नन्दिसंघ के देशीगण के आचार्य थे। इनके गुरू का नाम अभयनन्दि और गुरू के गुरू का नाम गुणनन्दि था। चन्द्रप्रभचरित