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18 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन में जैनों के अष्टम तीर्थकर चन्द्रप्रभ का चरित निबद्ध है। जैन संस्कृत चरितकाव्यों में यह उत्कृष्ट महाकाव्य है। इसमें 18 सर्ग और 1697 पद्य
हैं।
5. महासेनः प्रद्युम्नचरित
महासेन लाटवर्गट (लाडवागड) संघ के आचार्य थे। ये चारूकीर्ति के शिष्य तथा राजा भोजराज के पिता सिन्धुराज के महामात्य पप्पट के गुरू थे। प्रद्युम्नचरित में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का जीवन-चरित्र वर्णित है। यह चतुर्दश-सर्गात्मक महाकाव्य है। 6. असग कवि : वर्धमानचरित
महाकवि असग ने शक सं. 910 (988ई.) में वर्धमान-चरित की रचना की थी। अतएव कवि का समय ईसा की दसवीं शताब्दी है।' वर्धमान-चरित को महावीरचरित या सन्मतिचरित भी कहा जाता है। इसका कथानक गुणभद्र के उत्तरपुराण के 74वें पर्व से लिया गया है। यह अष्टादश सर्गात्मक महाकाव्य है। जो तीन हजार श्लोक-प्रमाण है। भगवद्गुणभद्राचार्य के पश्चात् भ. महावीर का चरित-चित्रण करने वालों में असगकवि का स्थान प्रथम है। प्रशस्ति के अन्तिम श्लोक के अन्तिम चरण से ज्ञात होता है कि उन्होंने आठ ग्रन्थों की रचना की है। इस चरितकाव्य के पढ़ने-सुनने का फल इस प्रकार है
वर्धमानचरितं यः प्रव्याख्याति श्रृणोति च। तस्येहपरलोकस्य सौरव्यं संजायते तराम्।।
- भक्ति श्लोक 26 विषय-वस्तु
असग कवि ने महावीर के पूर्व-भवों का वर्णन पुरूरवा भील से प्रारम्भ न करके इकतीसवें नन्दनकुमार के भव से किया है। नन्दनकुमार के पिता जगत से विरक्त होकर जिनदीक्षा ग्रहण करने के लिये उद्यत होते हैं और पुत्र का राज्याभिषेक कर गृहत्याग की बात उससे कहते हैं, तब वह कहता है कि जिस कारण से आप संसार को बुरा जानकर उसका