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________________ 16 वीरोदय महाकाव्य और भ महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन परिच्छेद-3 संस्कृत काव्यों में महावीरचरित - परम्परा संस्कृत-साहित्य में चरित - काव्यों की एक लम्बी परम्परा है। चरितकाव्यों में पुण्यशाली महापुरूषों का चरित वर्णित होता है। सामान्यतः संस्कृत-साहित्य में दो तरह के चरित - काव्य उपलब्ध होते हैं, 1. जिन चरितकाव्यों का कथानक पुराणों से ग्रहण किया गया है, ऐसे पौराणिक चरितकाव्य । 2. जिन चरित काव्यों का कथानक किसी ऐतिहासिक घटना या महापुरूष को लेकर लिखा गया है ऐसे ऐतिहासिक चरितकाव्य । चरितनामान्त महाकाव्यों पर विचार करते हुये डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने लिखा है कि 'चरितनामान्त' महाकाव्यों से हमारा तात्पर्य उस प्रकार के महाकाव्यों से है, जिनमें किसी तीर्थकर या पुण्य - पुरूष का आख्यान निबद्ध हो, साथ ही वस्तु - व्यापारों का नियोजन काव्यशास्त्रीय परम्परा के अनुसार संगठित हुआ हो । अवान्तर कथाओं और घटनाओं के वैविध्य के साथ अलौकिक और अप्राकृतिक तत्त्वों का समावेश अधिक न हो । दर्शन और आचार - शास्त्र इस श्रेणी के काव्यों में अवश्य समन्वित रहते हैं । कथावस्तु व्यापक, मर्मस्पर्शी स्थलों से युक्त और भावपूर्ण होती है।' ' जैनपरम्परा में संस्कृत में जो ग्रंथ - रचनाएँ हुईं, वे प्रारम्भ में तो दार्शनिक ही थीं। दर्शन एवं उपदेश ग्रन्थों के लिये संस्कृत का प्रारम्भिक प्रयोग हुआ। जैनपरम्परा में सबसे पहले संस्कृत लेखक आचार्य उमास्वामि माने जाते हैं। आचार्य उमास्वामि के पश्चात् संस्कृत लेखन का एक प्रवाह चला। अनेक आचार्यों ने दर्शन, तर्क, न्याय, ज्योतिष आदि के साथ चरित-काव्यों के लिये भी संस्कृत को अपनाया और पुराण एवं चरित -ग्रंथ संस्कृत में लिखे। जैन कवियों ने भी अपनी सम्प्रदाय - परम्परा से प्राप्त सिद्धान्तों की मान्यताओं के अनुरूप रामायण और महाभारत के आश्रय से अनेक काव्यों की रचना की ।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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