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वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन 'वीर' नाम से अलंकृत किया। मदोन्मत हाथी को वश में करने के कारण 'अतिवीर' तथा समीचीन बुद्धि के कारण ‘सन्मति' और कर्म-शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के कारण वे महावीर भी कहलाये।
____ बालक वर्द्धमान में यौवन के साथ-साथ अध्यात्म के बीजरूपी सत्य, अहिंसा, अस्तेय, के अंकुर भी प्रारंभ से ही प्रादुर्भूत होने लगे थे। राजा सिद्धार्थ व रानी त्रिशला महावीर के विवाह के स्वप्न संजोये थे; परन्तु उनकी प्रवृत्ति भोगों की ओर नहीं थी। वे प्रायः एकान्त में बैठकर संसार के स्वरूप पर गहन विचार किया करते और आत्म चिन्तन में लीन हो जाते थे। अतः उनकी चिन्तन धारा ने उन्हें भोगों के प्रति उदासीन बना दिया।
30 वर्ष के यौवन काल में महावीर ने दीक्षा ग्रहण की। एक दिन वे आत्म चिन्तन में निमग्न थे। उन्होंने अवधि ज्ञान से अपने पूर्वभवों को देखा और विचार किया कि अब मुझे आत्म-कल्याण का मार्ग खोजना है और आत्मसाधना द्वारा आत्मसिद्धि का लक्ष्य प्राप्त करना है। बारह वर्षों तक कठोर तप करते रहे। अन्त में जृम्भिक ग्राम के बाहर ऋजुकूला नदी के तट पर मनोरम वन में शालवृक्ष के नीचे एक शिला पर प्रतिमायोग से ध्यानारूढ़ हो गये। उनका सम्पूर्ण उपयोग आत्मा में केन्द्रित हो गया और वैशाख शुक्ल दशमी को पावन अपरान्ह समय में फाल्गुनी नक्षत्र में केवलज्ञान को प्राप्त किया। चारों जाति के देव और इन्द्रों ने श्रद्धा-भक्ति-पूर्वक भगवान की स्तुति की और केवलज्ञान कल्याणक का महोत्सव मनाया। सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से कुवेर ने समवशरण की रचना की। भगवान महावीर लोकात्तर महापुरूष थे। उनके व्यक्तित्व और देशना का प्रभाव निर्धन से लेकर राजमहलों तक समान रूप से पड़ा। भ. महावीर की अहिंसा और जीवन-सिद्धान्तों से प्रभावित होकर वैदिक ब्राम्ह्मणों को यज्ञादि का रूप बदलना पड़ा। इस प्रकार लोक-जीवन पर भगवान महावीर का आलौकिक प्रभाव पड़ा। सारा देश महावीर के जय-घोषों से गूंज उठा।