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________________ श्रवणधर्म में तीर्थकर परम्परा और भ. महावीर तथा महावीर चरित-साहित्य...... 5 पार्खापत्यों तथा निर्ग्रन्थ श्रावकों के इसप्रकार के और भी अनेक उल्लेख मिलते हैं, जिनसे निर्ग्रन्थ धर्म की सत्ता बुद्ध से पूर्व भलीभाँति सिद्ध हो जाती है।12 तीर्थंकर महावीर तीर्थंकर पार्श्वनाथ के 250 वर्ष पश्चात् प्रगतिशील परंपरा के संस्थापक 24वें तीर्थंकर महावीर हुये हैं। तीर्थंकरों की यह परंपरा वैज्ञानिक दृष्टि से सत्य का अन्वेषण करने वाली एक प्रमुख परंपरा रही है। महावीर धर्म-प्रवर्तक ही नहीं, बल्कि महान लोकनायक, धर्मनायक, क्रांतिकारी सुधारक, सच्चे पथ प्रदर्शक और विश्व बंधुत्व के प्रतीक थे। इस प्रकार इस युग की तीर्थंकर-परम्परा की अंतिम कड़ी भगवान महावीर हैं। महावीर ने जन-जन को तो उन्नत किया ही, साथ ही उन्होंने साधना का ऐसा मार्ग प्रशस्ति किया जिस मार्ग पर चलकर सभी व्यक्ति सुख और शांति प्राप्त कर सकते है। कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशला ने चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया सर्वगुण सम्पन्न बालक की वरीयता को परख सिद्धार्थ व त्रिशला ने अत्यधिक आह्लादित हो समृद्धि के सूचक वर्द्धमान नाम से अलंकृत किया। वर्धमान का लालन-पालन राजपुत्रोचित रूप से होने लगा। उनकी छवि जहां सबका मन मोह लेती थी, वहीं असाधारण प्रतिभा से भी लोग प्रभावित होते थे। वर्द्धमान को कलाचार्य के पास विद्याध्ययन हेतु भेजा गया, किन्तु वे तो सभी कलाओं के ज्ञाता थे। वर्द्धमान जब लगभग 8 वर्ष के थे तब वे अपने साथियों के साथ प्रमद-वन में क्रीडा करने गये। यह खेल वृक्ष को लक्ष्य करके खेला जा रहा था। जब वे अपने साथियों के साथ खेल रहे थे, तभी इन्द्र द्वारा प्रेरित संगम देव उनकी परीक्षा करने आया। सब लड़के तो फुफकारते हुये सर्प को देखकर भाग गये, किन्तु वर्द्धमान जरा भी विचलित नहीं हुये और अपने साथियों के भय का दूर करने के लिये सर्प को पकड़कर दूर हटा दिया। वर्द्धमान के पराक्रम व साहस को देखकर उस संगम देव ने उन्हें
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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