SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन आचार्यकल्प पंडित टोडरमल जी ने अपने 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' में बताया है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभ, द्वितीय अजित, सप्तम् सुपार्श्व, 22वें अरिष्टनेमि और 24वें महावीर का उल्लेख यजुर्वेद में है । डॉ. विसेन्ट ए. स्मिथ के अनुसार मथुरा संबंधी अन्वेषणों से यह सिद्ध है कि जैन धर्म के तीर्थंकरों का अस्तित्व ई. सन् से पूर्व में भी विद्यमान था । ऋषभादि 24 तीर्थकरों की मान्यता सुदूर प्राचीनकाल में पूर्णतया प्रचलित थी ।" उनमें से निम्न तीर्थकरों के विशेष वर्णन उपलब्ध हैं तीर्थंकर नमि 4 अनासक्ति योग के प्रतीक 21वें तीर्थकर नमिनाथ हैं । ऋषभदेव के अनंतर नमिनाथ का जीवनवृत्त जैनेत्तर साहित्य में उपलब्ध होता है। नमि मिथिला के राजा थे और उन्हें हिन्दू पुराणों में जनक के पूर्वज के रूप में माना गया है। नमि तीर्थंकर ई. सन् से सहस्रों वर्ष पूर्व हुये हैं । तीर्थंकर नेमिनाथ 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ का वर्णन जैनग्रंथों के अलावा ऋग्वेद, महाभारत आदि ग्रंथों में भी पाया जाता है। ये यदुवंशीं थे। इनके पिता का नाम समुद्र विजय था । ये कृष्ण के चचेरे भाई थे । नेमिनाथ का समय महाभारत काल है। यह काल ई. पूर्व 1000 के लगभग माना गया है। तीर्थंकर पार्श्वनाथ 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म बनारस के राजा अश्वसेन और उनकी रानी वामादेवी से हुआ था । इन्होंने तीस वर्ष की अवस्था में गृह त्याग कर सम्मेदशिखर पर तपस्या की थी । यह पर्वत अभी भी पार्श्वनाथ पर्वत के नाम से प्रसिद्ध है। पार्श्वनाथ ने केवलज्ञान प्राप्त कर 70 वर्षो तक श्रमण-धर्म का प्रचार किया। जैन पुराणों के अनुसार पार्श्वनाथ का निर्वाण तीर्थंकर महावीर के निर्वाण से 250 वर्ष पूर्व अर्थात् ईसा पूर्व 527+250 त्र 777 ईसा पूर्व में हुआ था । पार्श्वनाथ का श्रमण - परंपरा पर गंभीर प्रभाव है। डॉ. श्री हीरालाल जैन ने लिखा है- बौद्ध ग्रंथ 'अंगुत्तरनिकाय', 'चत्तुक्कनिपात' ( बग्ग 5 ) और उसकी 'अट्ठकथा' में उल्लेख है कि गौतम बुद्ध का चाचा ( वप्प शाक्य) निर्ग्रन्थ श्रावक था ।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy