________________
240
वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन तस्मिन् काले नयन सलिलं योषितां खडितानां । शान्तिं नेयं प्रणयिभिरतो वर्त्म भानोस्त्यजाशु।। प्रालेयानं कमलवदनात्सोऽपि हर्तुं नलिन्याः । प्रत्यावृत्तस्त्वयि कररूधि स्यादनल्पाभ्यसूयः ।। 39 ।।
(पूर्व मेघ) मेघदूत में पूर्वमेघ के 51वें श्लोक में गंगा के स्वच्छ जल में मेघ की छाया पड़ने पर संगम-स्थान से भिन्न स्थान में गंगा-यमुना के संगम की कल्पना कालिदास ने की है -
तस्याः पातुं सुरगज इव व्योम्नि पश्चार्द्धलम्बी। त्वं चेदच्छस्फटिकविशदं तर्कयेस्तिर्यगम्भः ।। संसर्पन्त्या सपदि भवतः स्रोतसिच्छाययासौ। स्यादस्थानोपगत यमुनासंगमेवाभिरामा।।
वीरोदय में इस श्लोक की स्पष्ट प्रतीति कराता हुआ चौदहवें सर्ग का 47 वाँ श्लोक है - समागमः क्षत्रियविप्रबुद्धयोरभूदपूर्वः परिरब्धसुद्धयोः । गांगस्य वै यामुनतः प्रयोग इवाऽऽसको स्पष्टतयोपयोगः।। 47 ।।
सर्ग- 14। इसमें कहा गया है कि परम विशुद्धि को प्राप्त क्षत्रियबुद्धि महावीर और विप्रबुद्धि इन्द्रभूति का अभूतपूर्व समागम हुआ जैसे प्रयाग में गंगा और यमुना जल का संगम तीर्थरूप में परिणत हो गया। 3. शिशुपालवध और वीरोदय महाकाव्य
शिशुपाल वध के प्रथम सर्ग में नारद के आकाश मार्ग से आने पर सब ओर फैलने वाले तेज को नीचे आते देखकर यह लोगों ने व्याकुलता पूर्वक कहा - "यह क्या है" ?