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वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन
241 तातं तिरश्र्चीनमनरू सारथेः प्रसिद्धमूर्ध्वज्वलनं हविर्भुजः। पतत्यधो धाम विस्सारि सर्वतः, किमेतदित्याकुलमीक्षितं जनैः ।। 2।।
श्रीकृष्ण उनके स्वागतार्थ ऊँचे आसन से उठ गए।
___ जवेन पीठादुदतिष्ठ दच्युतः।। 1--12 ||
उन्होंने नारद से आने का कारण पूछा। गतस्पृहोऽप्यागमन–प्रयोजनं वदेति वक्तु व्यवसीयते यथा।। 1-30 ।।
वीरोदय के पंचम सर्ग के प्रारम्भ में बताया है कि भगवान महावीर के गर्भ में आने के बाद आकाश में सूर्य प्रकाश को भी उल्लंघन करने वाला और उत्तरोत्तर वृद्धि को प्राप्त महान प्रकाश दिखायी दिया, जिसे देखकर "यह क्या है" ?- इस प्रकार तर्क-वितर्क लोगों के हृदय में उत्पन्न हुआ। अथाभवद् व्योम्नि महाप्रकाशः सूर्यातिशयी सहसा तदा सः । किमेतदित्थं हृदि काकुभावः कुर्वन् जनानां प्रचलत्प्रभावः ।। 1 ।।
-वीरो.सर्ग.5। इसके बाद श्री आदि देवियों का वह प्रकाश-समूह लोगों के समीप आया। उसे देखकर राजा सिद्धार्थ खड़े होकर उन देवियों के अतिथि सत्कार की विधि में उद्यत हुए। क्षणोत्तरं सन्निधिमाजगाम श्रीदेवतानां निवहः स नाम। तासां किलाऽऽतिथ्यविधौ नरेश उद्भीबभूवोद्यत आदरे सः।।2।।
-वीरो.सर्ग.5। आप देव-लक्ष्मियों का मनुष्य के द्वार पर आने का क्या कारण है? यह वितर्क मेरे चित्त को व्याकुल कर रहा है- ऐसा वाक्य राजा सिद्धार्थ ने कहा। हेतुर्नरद्वारि समागमाय सुरश्रियः कोऽस्ति किलेतिकायः । दुनोति चित्तं मम तर्क एष प्रयुक्तवान् वाक्यमिदं नरेशः ।। 3 ।।
-वीरो.सर्ग:5।