________________
239
वीरोदय का काव्यात्मक मूल्यांकन
अर्हस्यन्तर्भवनपतितां कर्तुमल्पाल्पभासं। खद्योतालीविलसितंनिभां विधुदुन्मेषदृष्टिम् ।। 18 ।।
हे मेघ! शीघ्र प्रवेश करने के लिए तत्क्षण हाथी के बच्चे के समान आकार धारण कर पूर्वोक्त सुन्दर शिखर वाले क्रीड़ा-पर्वत पर बैठे हुए तुम अल्प प्रकाश वाली और जुगनुओं की पंक्ति के समान बिजली के प्रकाश रूप दृष्टि को भवन के भीतर डालो। वीरोदय में महाकवि ज्ञानसागर लिखते हैं कि यत्खातिकावारिणि वारणानां लसन्ति शंकामनुसन्दधानाः । शनैश्चरन्तः प्रतिमावतारान्निनादिनो वारिमुचोऽप्युदाराः ।। 30 ||
-वीरो.सर्ग.2। उदार, गर्जना-युक्त एवं धीरे-धीरे जाते हुए मेघ नगर की खाई के जल में प्रतिबिम्बित अपने रूप से हाथियों की शंका को उत्पन्न करते हुए शोभित होते हैं।
इस प्रकार वीरोदय में मेघ हाथी के बच्चे की शंका को उत्पन्न करता हुआ शोभित होता है जैसे कालिदास के मेघदूत का मेघ हाथी के बच्चे के आकार को ग्रहण करता हुआ शोभित होता है। वीरोदय के द्वादश सर्ग के 41वें पद्य में उल्लेख है कि जैसे सूर्य प्रसन्न होकर विचार मात्र से ही कुहरे को दूर कर देता है वैसे ही भ. महावीर ने ध्यान के प्रभाव से आत्म स्थित कर्मरूप मल को दूर कर दिया था
अपाहरत् प्राभवभृच्छरीर आत्मस्थितं दैवमलं च वीरः। विचारमात्रेण तपोभृदद्य पूषेव कल्ये कुहरं प्रसद्य।। 41 ।।
-वीरो.सर्ग.121 इस श्लोक पर महाकवि कालिदास के पूर्व मेघदूत के 39वें श्लोक का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगत होता है जहाँ सूर्य के कमलिनी के मुख से ओस-रूपी आँसू को दूर करने के लिए आने का उल्लेख किया गया