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(xiv) सूक्तियों का समावेश - आचार्यश्री के साहित्य में यत्रतत्र सूक्तियाँ भी समाविष्ट हैं, जो बड़ी मार्मिक प्रभावी शिक्षाप्रद, माननीय-पालनीय-गृहणीय हैं। वीरोदय महाकाव्य से ऐसी कतिपय सूक्तियों का संकलन कर परिच्छेदों के अन्त में रिक्त स्थानों में इन्हें अर्थ सहित समायोजित कर दिया है ताकि पाठक इनसे भी सत्प्रेरणा लेकर आत्मोन्नयन कर सकें।
____ परमपूज्य गुरूवर्य मुनिश्री 108 श्री सुधासागर जी महाराज द्वारा सौंपे गये इस उत्तरदायित्व को वहन करने की यद्यपि मुझमें सामर्थ्य नहीं थी। वैसे भी किसी भी ग्रन्थ का सम्पादन सहज कार्य नहीं होता।) तथापि पूज्य गुरूवर्य के आदेश को शिरोधार्य कर इस दायित्व का निर्वहन किया है और उन्हीं के शुभाशीर्वाद एवं कृपा से इसे पूर्ण किया है। इस दायित्व के निर्वहन में हम कहाँ तक सफल हो सके हैं ? इसका परीक्षण पूज्य गुरूदेव एवं अन्य मनीषियों पर निर्भर है। जो भी ठीक बन पड़ा हो, उसे पूज्य गुरूदेव की कृपा एवं आशीर्वाद का ही प्रतिफल समझिए तथा कमी एवं त्रुटियों में हमारी अज्ञानता एवं प्रमाद को कारण मानिये। तदर्थ हम क्षमाप्रार्थी हैं और प्रबुद्धजनों से उनका परिमार्जन प्रार्थनीय है। परमपूज्य गुरूवर्य श्री सुधासागर जी महाराज के श्रीचरणों में
कोटिशः नमन।
श्री महावीर जयन्ती - चैत्र शुक्ला, त्रयोदशी। वीर निर्वाण संवत् 25311 विक्रमसंवत् 2062/दिनांक 22 अप्रैल 2005, शुक्रवार।
अभयकुमार जैन, प्राचार्य (सेवानिवृत्त)
एम.ए. बी.एड., साहित्यरत्न, साहित्याचार्य . जैनदर्शनाचार्य, प्राफताचार्य
सम्पादक